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इंदौर की महापौर का कार्यकाल बगैर जोन अध्यक्ष के बीता, न जोन अध्यक्ष बने, न एमआईसी का गठित हुई

एक माह बाद खत्म होने जा रहा निगम परिषद का कार्यकाल
पूरे कार्यकाल में नहीं चली पार्षदों की, नहीं हुआ कोई उपकृत

इंदौरJan 20, 2020 / 05:44 pm

रीना शर्मा

इंदौर की महापौर का कार्यकाल बगैर जोन अध्यक्ष के बीता, न जोन अध्यक्ष बने, न एमआईसी का गठित हुई

इंदौर की महापौर का कार्यकाल बगैर जोन अध्यक्ष के बीता, न जोन अध्यक्ष बने, न एमआईसी का गठित हुई

इंदौर. आज से ठीक एक माह बाद महापौर मालिनी गौड़ के नेतृत्व वाली नगर निगम परिषद का कार्यकाल खत्म होने जा रहा है। नगर निगम के इतिहास में परिषद का नाम दर्ज होगा, क्योंकि पांच साल में न जोन अध्यक्ष बने, न एमआईसी की समिति का गठन हो पाया। परिषद के सामने भाजपा संगठन भी लाचार नजर आया, क्योंकि हमेशा निगम के काम काज पर निगरानी रखने के लिए पार्टी समन्वय समिति बनाती है, लेकिन इस परिषद में उसका भी गठन नहीं हुआ।
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कई मायनों में महापौर मालिनी गौड़ के नेतृत्व वाली निगम परिषद अपने आपमें सबसे अलग रही। 85 में से 65 पार्षद जीतकर आने वाली परिषद के पूरे कार्यकाल में एकतरफा गौड़ की ही चली। अजयसिंह नरुका को सभापति बनाया गया तो एमआईसी प्रभारियों के साथ और अपील समिति का गठन हुआ। उसके बाद परिषद में कोई नियुक्ति नहीं हुई। पार्षद पूरे कार्यकाल में महापौर गौड़ और भाजपा संगठन का मुंह ताकते रहे।
शुरुआती दौर में भाजपा संगठन ने जब जोन अध्यक्ष बनाने को लेकर दबाव बनाया तो निगम के कर्ताधर्ताओं ने जादूगरी करते हुए जोन की संख्या बढ़ाए जाने का चक्रव्यूह रच दिया। पार्षदों को लगा कि ज्यादा सदस्य उपकृत हो जाएंगे, लेकिन कहानी कुछ ओर ही थी। जोन बढ़ाने को लेकर योजनाबद्ध तरीके से कोर्ट-कचहरी हो गई। बाद में समय-समय पर जब संगठन ने तलब किया तो कोर्ट के आदेश का फोटो दिखा दिया गया। ये मामला तो उलझा हुआ था, लेकिन एमआईसी की समिति का गठन तो किया ही जा सकता था। इसके बावजूद समिति का गठन नहीं किया गया। पार्षद लगातार दबाव बनाते रहे, लेकिन किसी ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया। सबसे ज्यादा ठगा महसूस तो एल्डरमैनों ने किया। नियुक्ति होने के बावजूद नगर निगम ने उनको शपथ नहीं दिलाई। इसके लिए वे कभी संगठन तो कभी महापौर के पास चक्कर लगाते रहे। बाद में सरकार कांग्रेस की आ गई। मुख्यमंत्री कमल नाथ ने एक आदेश जारी करके बिना ज्वॉइन करे सबका कार्यकाल खत्म कर दिया।
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संगठन खुद नहीं बना पाया समिति

भाजपा का मानना है कि स्थानीय निकाय व्यक्तिवादी न होते हुए संगठननिष्ट हो, इसके लिए पिछले डेढ़ दशक से इंदौर नगर निगम के काम व विवादों को निपटाने के लिए समन्वय समिति बनाई जाती रही है। गौड़ के कार्यकाल में समिति का गठन नहीं हुआ, जबकि पूरे कार्यकाल में कई विवाद हुए। यहां तक कि दो नंबर विधानसभा के एमआईसी सदस्य व पार्षदों ने तीन साल से नगर निगम में आना-जाना तक छोड़ दिया। परिषद की बैठक में भी संगठन के सख्त निर्देश के बाद वे पहुंचते थे।
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खाते में ही बड़ी उपलब्धि भी

वैसे शहर के हित में देखा जाए तो गौड़ के नेतृत्व वाली निगम परिषद के खाते में कई उपलब्धियां भी हैं। तीन बार स्वच्छता में नंबर वन आने के बाद चौथी बार दौड़ में सबसे आगे हैं। इस काम ने इंदौर का सम्मान पूरे देश में बढ़ा दिया। निगमायुक्त मनीष सिंह की सख्ती की वजह से सबसे बड़ी समस्या यानी आवारा पशुओं शहर से मुक्त हो गए। यहां तक कि अधिकांश लेफ्ट टर्न चौड़े कर दिए गए, जिसमें लोगों ने लाखों रुपए की जमीनें छोड़ दी। बात करें विधानसभा चार की तो स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में लेकर गौड़ ने अपनी विधानसभा और शहर के मध्य क्षेत्र का विकास कर दिया।

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