2016 में बेजान पहाड़ी पर जब पौधरोपण के लिए खुदाई शुरू हुई तो एक फीट से गहरा गड्ढा नहीं हो पा रहा था। पत्थरों को तोड़ना मुश्किल था, सो इसी गड्ढे में सोच को अंजाम तक पहुंचाना था। जून के महीने में कुछ पौधे लगाए, इसके सिंचाई के लिए टैंकर से पानी की व्यवस्था की। देखते ही देखते पौधों ने सर्वाइव कर लिया। फिर हिम्मत मिली और पांच साल में हजारों पौधे रोप दिए।
पानी की समस्या दूर करने के लिए पहाड़ी पर तीन बार बोरिंग कराई, लेकिन सफलता नहीं मिली। इसके बाद कुआं भी खुदवाया, लेकिन पानी नहीं मिला। ऐसे में बस एक सहारा बचा कि तालाब खुदवाया जाए, जिसमें बारिश में पानी स्टोर हो। इसके लिए 40 हजार स्कावयर फीट में तालाब की खुदाई कराई, इसमें 80 लाख लीटर पानी स्टोरेज हो सकता है। यही पानी सिंचाई के काम आता है। पेड़-पौधों को सिंचित करने के लिए ड्रिप इरिगेशन का उपयोग होता है। इससे कम पानी की खपत कम होती है। इसके लिए ऊंचाई वाले स्थान पर टंकी बनाई है, जहां से प्रेशर से पानी पौधों तक पहुंचता है।
प्रोफेसर एसएल गर्ग ने बताया कि तमाम तरह की कार्यशालाओं में लोग पौधरोपण पर बड़ी-बड़ी बातें करते थे, लेकिन जमीनी स्तर पर काम कम होता। ऐसे में मैंने ठाना कि कुछ अलग करना है। एक ऐसा मॉडल तैयार करना है जो प्रेरणा का सबक बने। इसी सोच को आगे बढ़ाया। आज बंजर पहाड़ी पर हरियाली छाई हुई है। प्रो. गर्ग ने बताया कि पौधों की डेथ रेट 5 प्रतिशत से कम है। पहले चरण में 2500 पौधे रोपे थे, रिजल्ट अच्छा मिलने पौधों की संख्या बढ़ाने लगा। 50000 पेड़-पौधे लगाने का लक्ष्य है।
केशर पर्वत पर लगभग 300 प्रकार के हरेभरे पेड़-पौधों का संसार बस चुका है। 3000 सागवान, 1000 शीशम, 1500 नीम, 1000 पीपल, 500 बरगद, 1000 आम, 500 जाम, 500 आवला, सेब, अनार के साथ ही औषधीय से लेकर कई फलदार किस्म के पौधे इस पहाड़ी का हिस्सा हैं। डॉ. गर्ग ने ऑलिव भी लगाया है जो अधिकतम 15 डिग्री तापमान में ही सर्वाइव कर पाता है, लेकिन यहां यह 30 से 35 डिग्री में पौधे बड़े हो रहे हैं।
कुछ अच्छी प्रजातियाः अंजीर, चंदन, अर्जुन, रुद्राक्ष, नागकेशर, दहीमन, पारस पीपल आदि।