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जीआई टैग के लिए इंदौरी पोहा को मिली एमएसएमई की मंजूरी, अब विदेशों मे बढ़ेगा व्यापार

इंदौरी लौंग सेंव का स्वाद 89 तो पोहा का स्वाद 70 साल से ले रहे : शिकंजी और खट्टे-मीठे मिक्चर को भी ब्रांड इंदौर बनाने के लिए कवायद जारी

इंदौरJul 19, 2019 / 12:20 pm

रीना शर्मा

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जीआई टैग के लिए इंदौरी पोहा को मिली एमएसएमई की मंजूरी, अब विदेशों मे बढ़ेगा व्यापार

इंदौर. मालवा की स्वादिष्ट व्यंजन परंपरा की बात करते ही देश दुनिया में लोगों के मुंह में पानी आने लगता है। इंदौरी पोहा, शिकंजी, लौंग सेंव और खट्टा-मीठा मिक्चर को नई पहचान और ब्रांड बनाने के लिए जीआई टैग दिलाने के प्रयास शुरू कर दिए गए हैं। एमएसएमई मंत्रालय और नमकीन-मिठाई एसोसिएशन इंदौर को आगे बढऩे के लिए मंत्रालय से अनुमति दे दी गई हैं।
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स्थानीय कारोबारियों के साथ मिल कर जीआई टैग आवेदन के लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं। एसोसिएशन बौद्धिक संपदा अधिकार कार्यालय चेन्नई में आवेदन करेंगे, जिसकी प्रक्रिया से गुजरने के बाद यह तमगा दिया जाएगा। स्वच्छता में नंबर वन इंदौरी व्यंजनों की देश-दुनिया में एक अलग पहचान हैं। जब भी इंदौरी कहीं जाते हैं, यहां का नमकीन अपने साथ ले जाना नहीं भूलते हैं। जब देश-दुनिया से लोग यहां आते हैं तो इंदौरी पोहा और शिंकजी का स्वाद जरूर लेते हैं। चाहे वह देश का नागरिक हो या विदेशी हो। इंदौर नमकीन मिष्ठान एसोसिएशन के अनुराग बोथरा बताते हैं, इंदौर के व्यंजनों की इस खास पहचान को देखते हुए ब्रांडिंग शुरू की जा रही है। इसके लिए जियोग्राफिकल इंडीकेशन लिया जाएगा। पहले चरण में इंदौरी नाश्ता पोहा, शिंकजी, लौंग सेव और खट्टा-मीठा मिक्चर को ले रहे हैं।
क्यों जरूरी : वर्तमान में देश दुनिया में इन वस्तुओं को इंदौर के नाम से ही बेचा जाता हैं। एेसा अनेक स्थानों पर देखने में आ रहा है। इसके लिए इंदौरी अपना दावा नहीं कर सकते हैं। एसोसिएशन की सोच है, जब इन वस्तुओं के साथ इंदौरी पहचान जुड़ी है तो क्यों नहीं इन्हें अपनी संपदा बना कर इनकी ब्रांडिंग करें, जिससे इंदौर का नाम तो दुनिया में हो।
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क्या होगा फायदा

जीआई टैग मिलने से इन वस्तुओं के उत्पादन का अधिकार इंदौर के कारोबारियों के पास ही रहेगा। व्यंजनों का वास्तविक स्वाद-गुणवत्ता मिलेगी। इससे देश के साथ विदेशों में भी व्यापार बढ़ेगा। स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के मौके बढ़ेंगे।
स्थानीय पहचान मिलेगी

एमएसएमई विभाग के सहायक संचालक निलेश त्रिवेदी ने बताया, एक बार टैग मिलने के बाद इसका उपयोग सभी उत्पादक कर सकते हैं। आवंटन प्रक्रिया जियोग्राफिकल इंडीकेशन गुड्स अधिनियम 1999 के तहत जियोग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्री द्वारा की जाती हैं।
अब तक इनको मिला : इंदौरी लेदर टॉय, रतलाम की रतलामी सेंव, झाबुआ का कडक़नाथ, महेश्वरी साडि़यां, बाघ प्रिंट, चंदेरी साड़ी।

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