अपने घर के हालात भी साझा करने लगते हैं। नाटक वर्तमान दौर में टूटते पारिवारिक परिवेश व परिवारों के दूर होने से जूझते बुजुर्ग लोगों की मनोवैज्ञानिक स्थिति को उजागर करने वाला है।
मंच पर – विजय पयासी
निर्देशक – नीतेश उपाध्याय
संगीत – समर्थ जैन
यह नाटक परसाई जी के व्यंग्यों को मिलाकर लिखा गया है, जिसमें दर्शक गुदगुदाएं भी और गंभीर भी हो गए। जीवन का शायद ही कोई ऐसा आयाम होगा जिसे परसाई जी ने अपने व्यंग्य में नहीं छुआ हो। दर्शकों के साथ सीधी बातचीत के माध्यम से परसाईजी की सरल सच्चाइयां सामने आती हैं, क्योंकि वह एक विचित्र विचार को समझाने की कोशिश करते हैं। वह क्यों सोचते हैं कि पॉपकॉर्न ने भारत की संस्कृति और समय को बर्बाद कर दिया है। लेखन की चुभने वाली शैली के लिए प्रसिद्ध, यह एकल नाटक उनके पूरे दिल से किए कार्यों, नैतिक तरीकों को प्रदर्शित करता है। अभिनेता विजय पयासी नाटक को नए स्तर पर ले जाते हैं, वह नाटक को मनोरंजक के साथ-साथ विचारोत्तेजक भी बनाते हैं। यह नाटक कोई तकनीक नहीं, बल्कि इसमें बताया गया है कि जीवन भी एक नाटक, हास्य और व्यंग्य से भरपूर है।