प्रशासन की एेसे बच्चों को भी शिक्षा देने की कोशिश है, जो स्कूल में दाखिला तो ले लेते है, लेकिन अभाव के कारण कुछ दिन बाद घर में ही रह जाते है। यह स्कूल बस में तैयार किया जा रहा है और बच्चों को जब समय होगा उस समय उनको पढ़ाने उनकी बस्ती या घर जाएगा। हालांकि शिक्षा विभाग द्वारा साक्षरता बढ़ाने के लिए आंगनवाड़ी से ले कर स्कूल चले अभियान जैसे प्रयोग बच्चों को स्कूल लाने के लिए किए गए। इतना करने के बाद भी शहर की बस्तियों और गांव की झोपडि़यों में रहने वाले बच्चें स्कूल से वंचित रह जाते हैं। वजह एक ही सामने आती है, स्कूल का समय उनके या मां-बाप के लिए अपनी जीविका चलाने के लिए काम करने का होता है।
सर्वे में सच आया सामने
हम आज चांद पर पहुंच गए, इंटरनेट का उपयोग कर रहे हैं, लेकिन आज भी बच्चों को अपेक्षित रूप से शिक्षा से जोडऩे में हमारे कार्यक्रम सफल नहीं हो रहे हैं। स्कूल चलें अभियान में स्कूल के रजिस्टर में तो बच्चों के नाम है। बच्चे स्कूल में नहीं हैं। जब प्रशासन ने इसका कारण जानने के लिए शिक्षको को भेजा तो पता चला, स्कूल के समय में उनका घर में रहना मजबूरी है। क्योंकि स्कूल के समय पर ही उनके माता-पिता दो जून की रोटी के लिए जाते हैं। इन बच्चों को अपने से छोटे भाई-बहनों की देखभाल करना होती है। या कुछ बच्चें अपने माता-पिता का सहयोग करने काम पर चले जाते हैं।
बस में ही होंगी क्लास और शिक्षक
कलेक्टर लोकेश कुमार जाटव का कहना है, इन बच्चों की मजबूरी को समझते हुए एक योजना तैयार की गई है। इसे पायलेट प्रोजेक्ट के रूप में आगामी स्वतंत्रता दिवस से शुरू कर रहे हैं। इन बच्चों को शिक्षित करने के लिए एक बस में एक चलित स्कूल तैयार किया जा रहा हैं। इस बस में एक शिक्षक होगा। दूसरा शिक्षक वालिंटियर होगा जो स्वैच्छिक रूप से पढ़ाने का काम करना चाहता हो। बस में पढ़ाई के सभी साधन होंगे। बस चिन्हिंत क्षेत्र में बच्चों के चिन्हिंत समय पर जाएगी और उन्हंे पढ़ाई स्कूली क्लास की तरह पढ़ाएगी। इसके लिए बस्तियों को चिन्हिंत किया जा रहा हैं।
ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन से मिलेगी बस
ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन से मिलेगी बस स्कूल बनाने के लिए बस की व्यवस्था बस आनर्स व ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन से सीएसआर एक्टिविटी के तहत की जा रही हैं। इसमें आवश्यक संसाधन शिक्षा विभाग उपलब्ध करवाएगा। पहले दो बसों के माध्यम से प्रयोग शुरू करेंगे। यदि संचालन में सफलता मिली तो कंपनियों की सीएसआर एक्टिविटी के तहत और भी स्कूल बस में तैयार करेंगे। फिलहाल यह स्कूल प्रायमरी स्तर के बच्चों के लिए किया जाएगा।
कामकाजी के लिए भी तलाशेंगे संभावना
यह समस्या प्राथमिक स्तर तक तो हो ही रही हैं। कुछ बच्चे पांचवी के बाद भी स्कूल जाना चाहते हैं। नाम भी लिखवा लेते है, लेकिन घर चलाने के लिए माता-पिता का हाथ बंटाने के लिए काम भी करना होता हैं। इनकी संख्या बहुत ज्यादा है। एेसे बच्चें दुकानों, होटलों पर देखें जा सकते हैं। कलेक्टर जाटव का कहना है, एेसे बच्चों के लिए भी संभावना तलाशी जा रही हैं। जिससे यह बच्चें काम भी कर सकें और कम से कम न्यूनतम शिक्षा हासिल कर कौशल विकास कार्यक्रमों के लिए तैयार हो सकें।