कमिश्नर संजय दुबे की अध्यक्षता व एमजीएम मेडिकल कॉलेज के सहयोग से इंदौर सोसायटी फॉर ऑर्गन डोनेशन का गठन किया। सोसायटी की अगुआई में 21 माह में 24 केडेवर ऑर्गन डोनेशन हो चुके हैं। शहर का नाम इस क्षेत्र में महानगरों की बराबरी में आ चुका है। शहर में हार्ट, लिवर, किडनी, त्वचा और नेत्र प्रत्यारोपण हो रहे हैं। पेन्क्रियाज व बोनमैरो ट्रांसप्लांट की तैयारी की जा रही है। वहीं, सरकारी अस्पतालों में केवल एमवाय अस्पताल में अंग निकालने के लिए रिट्रिवल सेंटर की अनुमति करीब 6 माह पहले दी गई थी। वहीं बोनमैरो ट्रांसप्लांट सेंटर अप्रैल-मई माह में शुरू करने का दावा किया था, लेकिन उल्लेखनीय काम नहीं हुआ। नतीजतन सरकारी अस्पतालों में केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं का लाभ गरीब मरीजों को नहीं मिल पा रहा है।
यह सुविधाएं मिलेंगी
देश में हर साल करीब 5 लाख मरीजों की मौत अंग के प्रत्यारोपण न होने की वजह से हो जाती है। प्रत्यारोपण का इंतजार कर रहे 5000 मरीजों में से सिर्फ 1 को ही दान में अंग मिल पाता है। केंद्र सरकार के नए निर्णय के मुताबिक, सरकारी अस्पताल में अंग प्रत्यारोपण होने पर गरीबी रेखा से नीचे के मरीजों व महिला मरीजों को मुफ्त दवा मिलेगी। इन दवाओं का खर्च हर माह 8 से 9 हजार रुपए आता है। वहीं, सरकारी अस्पतालों में सुपर स्पेशलिटी प्रोजेक्ट शुरू कर गरीबी रेखा के नीचे के मरीजों को मुफ्त और आम मरीजों को रियायती दरों पर इलाज मुहैया कराने की तैयारी की जा रही है। हालांकि, एमवाय अस्पताल की बात की जाए तो प्रोजेक्ट के लिए अगले साल के अंत तक की समय सीमा है। समय सीमा पर प्रोजेक्ट तैयार होने के बाद भी डॉक्टरों व पेरोमेडिकल स्टॉफ की कमी बड़ी बाधा है।
देश में हर साल करीब 5 लाख मरीजों की मौत अंग के प्रत्यारोपण न होने की वजह से हो जाती है। प्रत्यारोपण का इंतजार कर रहे 5000 मरीजों में से सिर्फ 1 को ही दान में अंग मिल पाता है। केंद्र सरकार के नए निर्णय के मुताबिक, सरकारी अस्पताल में अंग प्रत्यारोपण होने पर गरीबी रेखा से नीचे के मरीजों व महिला मरीजों को मुफ्त दवा मिलेगी। इन दवाओं का खर्च हर माह 8 से 9 हजार रुपए आता है। वहीं, सरकारी अस्पतालों में सुपर स्पेशलिटी प्रोजेक्ट शुरू कर गरीबी रेखा के नीचे के मरीजों को मुफ्त और आम मरीजों को रियायती दरों पर इलाज मुहैया कराने की तैयारी की जा रही है। हालांकि, एमवाय अस्पताल की बात की जाए तो प्रोजेक्ट के लिए अगले साल के अंत तक की समय सीमा है। समय सीमा पर प्रोजेक्ट तैयार होने के बाद भी डॉक्टरों व पेरोमेडिकल स्टॉफ की कमी बड़ी बाधा है।