कुंदनपुर चौकी में पदस्थ एएसआई बाबूशंकर शुक्ला के शौर्य का किस्सा आज तक पुलिस महकमा याद करता है। वे तब तक लुटेरों से लोहा लेते रहे, जब तक कि उनकी सांसें नहीं उखड़ गईं।
05 फरवरी 1999 की रात 8 बजे कुंदनपुर ग्राम में सौ के करीब हथियारबंद बदमाशों ने हमला बोल दिया। पड़ोस के गांव में किसी के यहां विवाह आयोजन होने से यहां पदस्थ दो पुलिसकर्मी बरात में गए थे। बदमाशों को इस बात की सूचना किसी से मिल गई कि चौकी पर एक अकेले एएसआई ही हैं। इस मौके का फायदा उठाकर बदमाश गांव में घुस गए और लूटपाट शुरू कर दी।
पुलिस चौकी से पहले जो घर और दुकानें थीं, उनसे सामान लूटा और आगे बढ़े। उन्होंने पुलिस चौकी को भी घेर लिया। एएसआई बाबूशंकर शुक्ला भीतर थे। हंगामा सुनकर वे समझ चुके थे कि लुटेरों ने हमला कर दिया है। स्थिति भांपते ही उन्होंने पोजिशन ली और बदमाशों को ललकारा। जवाब में लुटेरों ने फायरिंग शुरू कर दी। शुक्ला ने भी जवाब दिया और फायर किए। चारों ओर से घिरे शुक्ला ने 10 बदमाशों का बहादुरी के साथ सामना किया। काफी देर तक दोनों तरफ से फायरिंग होती रही। इसी बीच एक गोली उनके सीने में लगी। इस पर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। वे लगातार फायरिंग करते रहे, ताकि बदमाश उनके साथ उलझे रहें और गांव में आगे नहीं जाएं। उन्हें भरोसा था कि थोड़ी देर तक इन्हें रोक लिया तो पुलिस फोर्स भी पहुंच जाएगी।
ग्लोबल इंवेस्टर समिट : हर महीने इंदौर आ रही 100 करोड़ से ज्यादा की निवेश योजना शुक्ला ने अपनी पोजिशन नहीं छोड़ी, लेकिन गोली लगने से वे बुरी तरह घायल हो चुके थे। इसी बीच बदमाशों की एक और गोली उनके गले पर लगी। इसके बाद वे बेहोश हो गए। कुछ ही समय में पुलिस के आला अफसर और फोर्स पहुंचा और बदमाशों को खदेड़ दिया। वे चौकी में पहुंचे तब तक शुक्ला शहीद हो चुके थे। उनकी जान चली गई, लेकिन उन्होंने लुटेरों को गांव में आगे नहीं जाने दिया। मृत्यु उपरांत सरकार ने उन्हें वीरता पदक प्रदान किया। सिर्फ कुंदनपुर ही नहीं, आसपास के गांवों ने भी उनकी शहादत को सलाम किया। पुलिस महकमे में उनका नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है। उनके बेटे आजाद वायुसेना में पदस्थ होकर देशसेवा कर रहे हैं।