गौरतलब है कि प्रदेशभर में मोतियाबिंद सहित अनेक गंभीर बीमारियों से लाखों लोग पीडि़त हैं। स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट इंदौर में आंख गंवाने वाले १५ लोगों को अब तक मदद नहीं दिलवा पाए हैं। अस्पताल में जाकर उनके परिजनों के सामने बड़े -बड़े दावे किए। यहां तक कि सरकार से आवास, पेंशन, जीवन भर मुफ्त इलाज और बीपीएल कार्ड बनवाने का दावा किया, लेकिन अब तक उन्हें कोई सुविधा नहीं मिल पाई है। यहां तक कि परिजनों को अब इलाज के लिए निजी खर्च पर डॉक्टरों के पास जाना पड़ रहा है। दरअसल इंदौर आई हॉस्पिटल में १५ मरीजों की आंखों की रोशनी गई थी। इनमें से ७ मरीजों की आंखों की रोशनी पूरी तरह से चली गई, जबकि ८ मरीजों की आंखों की रोशनी पूरी तरह लौट नहीं पाई है। अब भी आंखों से धुंधला ही दिखाई देता है। कई मरीज ५० वर्ष की आयु से अधिक थे, ऐसे में एक आंख से घर के बाहर निकलना और खेत में जाकर काम करना उनके बस में नहीं। इसी के बाद मंत्री सिलावट ने आवास, पेंशन, बीपीएल कार्ड, मुफ्त इलाज के दावे किए थे, लेकिन अब तक लाभ नहीं मिला। खास बात है कि जिन मरीजों ने निजी खर्च पर इलाज करवाया उन्हें शासन से कोई सुविधा नहीं मिली।
– प्रदेशभर में लाखों जररूतमंद
उधर, प्रदेशभर में अलग-अलग बीमारियों के लाखों ऐसे जरूरतमंद लोग हैं जो सिर्फ सरकार पर निर्भर हैं, लेकिन उन्हें ही स्वास्थ्य विभाग इलाज उपलब्ध नहीं करवा पा रहा है। इंदौर की ही बात की जाए तो यहां स्वास्थ्य विभाग के पास पीसी सेठी अस्पताल को छोड़कर कोई ढंग का अस्पताल नहीं है। खास बात है कि पुरुषों को अगर किसी बीमारी में भर्ती करना पड़े तो प्रदेश के सबसे बड़े शहर इंदौर में ही स्वास्थ्य विभाग के पास कोई व्यवस्था नहीं है। वे मरीज को मेडिकल कॉलेज के एमवाय अस्पताल में रैफर कर देते हैं। स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाले समाजसेवियों का कहना है कि राहत इंदौरी के घर जाकर इलाज की दरियादिली दिखाने वाले मंत्री को पहले अपने प्रदेश के उन लोगों के लिए इलाज की बेहतर सुविधाएं उपलब्ध करवाना चाहिए जो अपना इलाज कराने में सक्षम नहीं हैं।
– जिला अस्पताल तक रैन बसेरे पर निर्भर
इंदौर जैसे शहर में स्वास्थ्य विभाग का जिला अस्पताल तक रैन बसेरे में चल रहा है। मंत्री के शहर में जिला अस्पताल की स्थिति देखकर प्रदेशभर के अस्पतालों का अंदाजा लगाया जा सकता है। भूमिपूजन के पांच माह बाद भी जिला अस्पताल की नई इमारत का काम शुरू नहीं हो पाया है। शहर के पश्चिम क्षेत्र के हजारों लोगों को यहां निजी अस्पताल में जाना पड़ रहा है, लेकिन मंत्री का इस ओर ध्यान नहीं है। वहीं जिस बाणगंगा अस्पताल की ३० बिस्तर की इमारत बना दी गई, वहां ओटी तक नहीं है। मरीजों को सिर्फ यहां से रैफर किया जा रहा है। उधर, मोतियाबिंद के ही प्रदेशभर में लाखों मरीज हैं, जिनके समय पर ऑपरेशन नहीं हो पा रहे हैं।