रमणीक सिंह ने अमीर खां साहब के प्रिय रागों में से राग अभोगी कानड़ा चुना और बंदिश गाई चरन घर आए री…। अमीरखानी गायकी में अति विलंबित लय में राग को जिस तरह सजाया जाता है वह सब उनके गायन में महसूस हुआ। लंबा आलाप, बेहद चैनदारी और गहनता लिए हुए ठहराव के साथ उन्होंने ये बंदिश पूरी की। प्रभावी लयकारी के साथ वे राग को आभूषित करती गईं।
अभोगाी कानड़ा में उनकी द्रुत बंदिश थी, रख ली जो मोरी लाज…तू ही साहिब तू सरकार…। इस बंदिश के खत्म होते ही उन्होंने जैसे ही तराना शुरू किया तो आनंद की फुहारें बरस पड़ीं। अमीर खां साहब का तराना मशहूर था और रमणीक सिंह ने उनकी शैली पकडऩे की कोशिश करते हुए इस तराने से मुग्ध कर दिया।
अभोगी कानड़ा के बाद उन्होंने दरबारी कानड़ा में एक एक द्रुत लय की बंदिश गाई झनक झनक बाजे बिछुआ…। ये बंदिश भी उन्होंने बेहद सधे स्वर में गाई और अंत में राग भैरवी में मशहूर रचना गाई बाबुल मोरा नैहर छूटो जाय…। भैरवी में ही वारिस शाह की एक हीर भी गाई। जब हीर खत्म हुई और उन्होंने श्रोताओं से इजाजत ली तो सुनने वालों का मन था काश कुछ देर और गाती रहें। उनके साथ हारमोनियम डॉ. विवेक बंसोड़ और तबले पर हितेन्द्र दीक्षित ने सटीक संगत की।
अति धूम मचाई कन्हैया ने सब सखियन संग….
कार्यक्रम के पहले भाग में भोपाल से आए गुंदेचा बंधु और उस्ताद जिया फरीदुद्दीन डागर के शागिर्द मनोज कुमार ने ध्रुपद गायन किया। उन्होंने राग देश में आलाप जोड़ झाला के बाद धमार में बंदिश गाई अति धूम मचाई कन्हैया ने सब सखियन संग…। इसके बाद राग झिंझोटी में रचना गाई मोहिनी मूरत सांवली सूरत नंद दुलारे…..। ंइसके बाद राग चारूकेशी में कबीर की रचना झीनी झीनी बीनी चदरिया और अंत में एक भक्ति रचना गाई शंकर गिरिजापति…..। उनके साथ पखावज पर थे रोहन दास और तानपूरे पर अर्पित शाह।
कार्यक्रम के पहले भाग में भोपाल से आए गुंदेचा बंधु और उस्ताद जिया फरीदुद्दीन डागर के शागिर्द मनोज कुमार ने ध्रुपद गायन किया। उन्होंने राग देश में आलाप जोड़ झाला के बाद धमार में बंदिश गाई अति धूम मचाई कन्हैया ने सब सखियन संग…। इसके बाद राग झिंझोटी में रचना गाई मोहिनी मूरत सांवली सूरत नंद दुलारे…..। ंइसके बाद राग चारूकेशी में कबीर की रचना झीनी झीनी बीनी चदरिया और अंत में एक भक्ति रचना गाई शंकर गिरिजापति…..। उनके साथ पखावज पर थे रोहन दास और तानपूरे पर अर्पित शाह।
कलारसिक नहीं पहुंचे!
समारोह के पहले दिन हॉल की जो हालत थी, वही दूसरे दिन भी रही। पहली सभा में करीब डेढ़ सौ श्रोता थे जो दूसरी सभा में सौ के अंदर ही रह गए। रमणीक सिंह ने आला दर्जे का गायन पेश किया लेकिन अधिकांश कुर्सियां खाली थीं। संस्कृति विभाग के अधिकारियों का कहना है कि हमने तो अखबारों में विज्ञापन छपवाए हैं और आयोजन सब के लिए खुला है, पर पता नहीं क्यों लोग नहीं आ रहे। उधर शहर के कई संगीत संस्थानों के शिक्षक और विद्यार्थी भी नदारद रहे।
समारोह के पहले दिन हॉल की जो हालत थी, वही दूसरे दिन भी रही। पहली सभा में करीब डेढ़ सौ श्रोता थे जो दूसरी सभा में सौ के अंदर ही रह गए। रमणीक सिंह ने आला दर्जे का गायन पेश किया लेकिन अधिकांश कुर्सियां खाली थीं। संस्कृति विभाग के अधिकारियों का कहना है कि हमने तो अखबारों में विज्ञापन छपवाए हैं और आयोजन सब के लिए खुला है, पर पता नहीं क्यों लोग नहीं आ रहे। उधर शहर के कई संगीत संस्थानों के शिक्षक और विद्यार्थी भी नदारद रहे।
रमणीक सिंह बोलीं….
इंदौर द्य दिल्ली में पली-बढ़ी रमणीक सिंह २० वर्षों से पहले अमरीका और अब कनाडा में रहती हैं। अब टोरंटो में सुर रंग एकेडमी के जरिए अमीरखानी गायकी सिखाती हैं। रमणीक सिंह ने संगीत की तालीम अमीर खां साहब की शिष्या अमरजीत कौर से ली है। वे कहती हैं, मैंने अमीर खां साहब को देखा नहीं, पर अपनी गुरु से जो सुना, उसके जरिए वे मेरे दिल-दिमाग पर छा गए। उन्हें अपने आसपास हमेशा महसूस करती हूं।
इंदौर द्य दिल्ली में पली-बढ़ी रमणीक सिंह २० वर्षों से पहले अमरीका और अब कनाडा में रहती हैं। अब टोरंटो में सुर रंग एकेडमी के जरिए अमीरखानी गायकी सिखाती हैं। रमणीक सिंह ने संगीत की तालीम अमीर खां साहब की शिष्या अमरजीत कौर से ली है। वे कहती हैं, मैंने अमीर खां साहब को देखा नहीं, पर अपनी गुरु से जो सुना, उसके जरिए वे मेरे दिल-दिमाग पर छा गए। उन्हें अपने आसपास हमेशा महसूस करती हूं।
उस कमरे में उनकी खुशबू : मैं अमरजीत के घर जिस कमरे में बैठकर सीखती थी, उसमें अमीर खां रहते थे जब भी दिल्ली आते थे। एक बार गुरु से सुना था, एक दिन खां साहब तानपूरा लेकर आंख बंद कर रियाज कर रहे थे। आधे घंटे बाद आंख खोली तो देखा कमरा लोगों से भरा है। बाहर भी लोग खड़े थे। एेसा था उनका जादू। मैं खुशकिस्मत हूं उस कमरे में बैठकर सीखने का मौका मिला। वहां उनकी खुशबू महसूस की है।