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इंदौर

खत लिखने की परंपरा को सहेज रहे तीन युवक

आखिरकार लौट आया खत का वो गुजरा जमाना…

इंदौरSep 15, 2017 / 02:37 pm

अर्जुन रिछारिया

letter writing

letter writting

मेधाविनी मोहन@ इंदौर. खत, खत नहीं होते, बल्कि जज्बातों के दस्तावेज होते हैं…और जज्बात अपनी ही भाषा में बयां किए जाएं, तभी असर करते हैं। अब आप कहेंगे कि ईमेल और वॉट्सएप के जमाने में हम कहां खत-वत की बातें लेकर बैठ गए? लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि कुछ नवयुवक खत लिखने की परंपरा को बखूबी सहेज रहे हैं।
लोगों के जज्बातों को ये देते हैं शब्द
द इंडियन हैंडरिटन लेटर कॉर्पोरेशन के अंकित अनुभव हों या लेटरामेल के सुमन्यु वर्मा और संदीप, ये लोग अपने लेखन की प्रतिभा का प्रयोग दिल से दिल तक बात पहुंचाने में कर रहे हैं। हर कोई लिख नहीं सकता, इसलिए लोगों के जज्बातों को ये शब्द देते हैं। इसे इन्होंने स्टार्टअप की तरह शुरू किया है और अब तक हजारों खत लिख चुके हैं। जाहिर है कि लोग इस विचार को पसंद कर रहे हैं। वे इस भागती-दौड़ती जिंदगी में कुछ देर ठहरकर खत लिखना और पढऩा चाहते हैं। उन सच्चे एहसासों को महसूस करना चाहते हैं, जो डिजिटल अभिव्यक्ति के दौर में कहीं खो-से गए हैं।
अपनापन अपनी भाषा में
अपनी भाषा अपनेपन का एहसास कराती है। अपनों के और करीब लाती है। इसे ध्यान में रखते हुए इन युवाओं ने खतों की यह सुविधा क्षेत्रीय भाषाओं में भी उपलब्ध कराई है। पहले अंकित को लगा था कि लोग अंग्रेजी में खत लिखवाना ही पसंद करेंगे। बाद में जाना कि लोग मातृभाषा में एहसास बयां करने में ज्यादा भरोसा करते हैं। खत मोहब्बत वाला हो, परिवार के किसी सदस्य का हो या दोस्त का..अपनी भाषा में बयां किए एहसास सीधे दिल में उतरते हैं।
कुछ मिसिंग है…
नई तकनीकों के बीच हम खुद को आधुनिक समझते हैं। पर सच कहा जाए तो हम गुजरे जमाने का मिस करते हैं। डाकिया आता तो है… पर पोटली भरकर जज्बात नहीं लाता। हर चीज हमारे हाथ में नहीं है, लेकिन अपने हाथों से खत लिखकर रिश्तों में ऊर्जा भरते रहना तो है। तो चलिए…जो अधूरा है उसे पूरा करें। आज किसी अपने को खत लिखें।

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