जज्बा ऐसा… रिटायर हुए, 13 साल से मुफ्त पढ़ा रहे व र्ष 2005 में हाथीपाला हासे उर्दू स्कूल से रिटायर शिक्षक नजर मोहम्मद मुंशी 13 वर्ष बाद भी तय समय पर स्कूल जाते हैं। वे खजराना की न्यू तालीम गल्र्स हासे स्कूल में पढ़ाते हैं। शाम को घर पर क्लास लेते हैं, वह भी नि:शुल्क। वर्ष 1966 में संयोगितागंज स्कूल से करियर शुरू करने वाले मुंशी को पढ़ाने का ऐसा जज्बा कि सेवानिवृत्ति के अगले दिन से फिर स्कूल आने लगे। केमेस्ट्री से एमएससी और बीएड कर चुके मुंशी 77 साल के हो चुके हैं। आज भी उतने ही एक्टिव हैं, जितने 1966 में थे। उनकी खासियत है कि वे केमेस्ट्री के सभी फॉर्मूले उर्दू में ट्रांसलेट कर पढ़ाते हैं, ताकि बच्चों को आसानी से समझ आ सकें।
अपराध के लिए कुख्यात बस्ती के बच्चों को दी दिशा विपरीत हालातों व अभावों में पढ़-लिखकर स्टेशन मास्टर बने राजू सैनी को हमेशा कुछ खलता था। वे बस्ती के नौजवानों के लिए कुछ करना चाहते थे। एक समय गोमा की फैल, पंचम की फैल, लाला का बगीचा, कोली मोहल्ला, भामी मोहल्ला क्षेत्र में बच्चे दिशाहीन होकर अपराधों में पड़ जाते थे, सैनी के मार्गदर्शन का नतीजा है कि आज अधिकतर घरों में एक बच्चा सरकारी नौकरी कर रहा है। नेहरू पार्क के खुले मैदान में सैनी द्वारा शुरू की गई कोचिंग में 1000 छात्र पढ़ कर निकल चुके हैं और रेलवे, पुलिस, बैंक, आबकारी, तहसीलदार, कस्टम विभाग आदि में नौकरी कर रहे हैं। सैनी कहते हैं कि बस्ती से नशा, सट्टा-जुआ व अपराध पूरी तरह खत्म होना चाहिए, ये तभी होगा जब बच्चे शिक्षित होंगे।
पहले नौकरी, फिर गरीब बच्चों के शिक्षक सं जय सांवरे पुलिस में हैं। उन्होंने अपनी नौकरी करने के बाद कुछ समय निकाल कर गरीब बच्चों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया है। संजय सप्ताह में एक दिन रविवार को ड्यूटी के बाद लालबाग की गरीब बस्ती में अपनी क्लास लगाते हैं। वह इस बस्ती में चार साल से बच्चों को पढ़ाते आ रहे हैं। उन्होंने अब तक 50 से अधिक बच्चों को सरकारी स्कूल में भर्ती भी करवाया दिया है। वे अपने खर्चे से बस्ती के बच्चों को त्योहार पर कपड़े तो स्कूल के लिए बैग व कॉपी-किताबें लाकर देते हैं। संजय के मुताबिक इस ट्यूशन क्लास में वे गरीब बच्चे आते हैं, जिनके माता-पिता कोचिंग तो क्या स्कूल पहुंचाने में भी सक्षम नहीं। वह उन्हें पढ़ाकर किसी काबिल बनाना चाहते हैं। एसएसपी रुचिवर्धन मिश्र ने भी संजय के इस कदम को सराहा और उनकी क्लास में आकर बच्चों को पढ़ा चुकी हैं।
बच्चों का सर्वांगीण विकास ही उद्देश्य केशवी झा जबलपुर से इंदौर में नौकरी के लिए आईं थीं। यहां संस्था रॉबिनहुड से जुड़ीं और बच्चों के सर्वांगीण विकास में लग गईं। वे सप्ताह में छह दिन दफ्तर में काम करती हैं और एक दिन बस्तियों में बच्चों के बीच पहुंच जाती हैं। केशवी ने बताया कि जब मैं इंदौर आई तो मेरी एक कलिग के जरिए में संस्था से जुड़ी। मैंने हर रविवार संस्था के साथ काम करने का तय किया। बच्चों को पढ़ाने के साथ ही रहन-सहन सिखाना, साफ-सफाई, बॉडी लैंग्वेज, पर्सनालिटी डेवलपमेंट के साथ ही स्पोट्र्स के लिए भी हम अलग-अलग आयोजन रखते हैं। बच्चों को सिखाने के लिए हमें खुद बच्चा बनना पड़ता है, तब जाकर हम उन्हें सिखा पाते हैं।