18 अप्रैल 1859 में शिवपुरी के तात्या टोपे को अंग्रेजों ने फांसी पर चढ़ा दिया। शाजापुर की रानी काशीबाई (रानी लक्ष्मीबाई की सहेली) 1857 की लड़ाई में शहीद हुईं। शिवनी की वीर मुडडेबाई गोंड, रैनीबाई गोंड, देमाबाई गोंड और बिरछू गोंड 1930 के जंगल सत्याग्रह के दौरान शहीद हो गए। धार अमझेरा के गुलाबराव दीवान, सलकूराय, भवानी सिंह, मोहनलाल कामदार और चिमनलाल वकील को 1857 में इंदौर लाकर फांसी पर चढ़ा दिया। सतना के लाल पद्मधर सिंह 1942 में इलाहाबाद में अंग्रेजों से मोर्चा लेते हुए फायरिंग में शहीद हो गए। शहीद भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, बटुकेश्वर दत्त, राजगुरु के साथ अंग्रेजों की सत्ता को हिला देने वाले मुरैना के अमर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल को 1942 में फांसी दी गई।
इंदौर के आजादी के परवाने
– आजादी के महासंग्राम में इंदौर से 1857, 1942 और 1947 में 39 दीवानों ने जान गंवाई।
– 1857 शिवदीन, जियालाल, भान सिंह, खेखलाल, हसन खां, गंगादीन, हंसराज, मीणा, सेवकराम, सुरजीत, शंकर, कृपाराम, गंगादीन, पूरन, जेवन सिंह, किशन, गयादीन, पूरन सिंह, खंडू शामिल रहे।
– 1942 सुखराम, रामचंद्र, घासीराम, शीतलसिंह, सेवाराम, लालसिंह, सोस, पंचम, देवा, रामलाल, सुखलाल को निशाना बनना पड़ा। सूबेदार सआदत खां, बंसगोपाल, भागीरथ सिलावट, राजा बख्तावर सिंह, रघुनंदन को फांसी दे दी।
– 1941 अनंत लक्ष्मण कनेरे, दुर्गा, रामनारायण मूजर और रमुआ को
– 1941 में फांसी पर चढ़ा दिया गया।
– आजादी के महासंग्राम में इंदौर से 1857, 1942 और 1947 में 39 दीवानों ने जान गंवाई।
– 1857 शिवदीन, जियालाल, भान सिंह, खेखलाल, हसन खां, गंगादीन, हंसराज, मीणा, सेवकराम, सुरजीत, शंकर, कृपाराम, गंगादीन, पूरन, जेवन सिंह, किशन, गयादीन, पूरन सिंह, खंडू शामिल रहे।
– 1942 सुखराम, रामचंद्र, घासीराम, शीतलसिंह, सेवाराम, लालसिंह, सोस, पंचम, देवा, रामलाल, सुखलाल को निशाना बनना पड़ा। सूबेदार सआदत खां, बंसगोपाल, भागीरथ सिलावट, राजा बख्तावर सिंह, रघुनंदन को फांसी दे दी।
– 1941 अनंत लक्ष्मण कनेरे, दुर्गा, रामनारायण मूजर और रमुआ को
– 1941 में फांसी पर चढ़ा दिया गया।
इससे नहीं कम होता महत्व
आजादी के परवानों का यह रिकॉर्ड संरक्षित रखने वाले सुभाष चंद्र आजाद स्वाधीनता सेनानी मंच के संयोजक मदन परमालिया कहते हैं, आजादी के लिए अगर एक व्यक्ति ने भी जान दी है तो उसका महत्व कम नहीं होता। उन्होंने बताया कि इंदौर में जैसे आजादी का जुनून सिर चढक़र बोल रहा था। इसके साथ ही जबलपुर, नरसिंहपुर, धार, छतरपुर, बैतूल, रीवा, रायपुर (छत्तीसगढ़ की राजधानी), उज्जैन और रायसेन जिलों से भी बड़ी संख्या में लोगों ने जान की बाजी लगा दी।
आजादी के परवानों का यह रिकॉर्ड संरक्षित रखने वाले सुभाष चंद्र आजाद स्वाधीनता सेनानी मंच के संयोजक मदन परमालिया कहते हैं, आजादी के लिए अगर एक व्यक्ति ने भी जान दी है तो उसका महत्व कम नहीं होता। उन्होंने बताया कि इंदौर में जैसे आजादी का जुनून सिर चढक़र बोल रहा था। इसके साथ ही जबलपुर, नरसिंहपुर, धार, छतरपुर, बैतूल, रीवा, रायपुर (छत्तीसगढ़ की राजधानी), उज्जैन और रायसेन जिलों से भी बड़ी संख्या में लोगों ने जान की बाजी लगा दी।