पत्रिका से खास बातचीत में उन्होंने बताया, वर्ष 1974-75 में वे श्रीलंका में आयोजित अंतरराष्ट्रीय तैराकी प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। तब गोताखोरी में तीसरी रैंक हासिल की। लगातार तैराकी प्रतियोगिता में भाग लेते हुए वर्ष 1982में एशियन गेम्स विजेता रहीं। मां के बीमार होने के बाद भी तैराकी से लगाव रहा। उनकी सेवा करते हुए प्रतियोगिता में हिस्सा लेना बंद कर दिया, लेकिन शहर के युवाओं को तैराकी के गुर सिखाने में पीछे नहीं रहीं। प्रतिवर्ष करीब 30 बच्चों को तैराकी सिखाती हैं। उनके द्वारा प्रशिक्षित करीब 8 बेटियां राष्ट्रीय व 2 से अधिक अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में हिस्सा ले चुकी हैं। तीन वर्ष पूर्व नगर निगम से सेवानिवृत्ति के बाद भी तैराकी के प्रति लगाव कम नहीं हुआ। आज भी लड़कियों व महिलाओं को ट्रेनिंग दे रही हैं।