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इंदौर

आप यूं न समझे, जिम्मेदार भी है आज के युवा, कर रहे समाजसेवा

जरूरतमंद बच्चों के साथ समय बिताकर युवा दे रहे खुशियां, चाइल्ड लाइन से जुडक़र कोई पढ़ाई तो कोई भर रहा फीस

इंदौरOct 13, 2017 / 07:04 pm

amit mandloi

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चिंतन विजयवर्गीय
इंदौर. शहर में युवाओं का एक वर्ग अपने कॅरियर, नौकरी व बिजनेस के साथ जरूरतमंद बच्चों के लिए भी समय निकालकर खुशियां बांट रहा है। चाइल्ड लाइन से जुडक़र ये युवा न केवल बच्चों की पढ़ाई में मदद कर रहे हैं, वहीं स्कूल फीस भी खुद की पॉकेट मनी से भरते हैं।

चाइल्ड लाइन में जरूरतमंद बच्चों के लिए मस्ती की पाठशाला चलाई जाती है। इसमें चाइल्ड लाइन की टीम ऐसे बच्चों को शामिल करती है, जो किन्हीं कारणों से पढ़ाई नहीं कर पाते हैं। उन्हें रोज चाइल्ड लाइन के ऑफिस में पढ़ाने के साथ परेशानी पूछकर उसे हल करने का प्रयास किया जाता है। चाइल्ड लाइन डायरेक्टर वसीम इकबाल बताते हैं, कई युवा क्षमता अनुसार बच्चों की मदद करते हैं। युवाओं के इस प्रयास से बच्चों को भी काफी खुशी मिलती है।

बर्थडे गिफ्ट में बहन
एमएसडब्ल्यू की पढ़ाई कर रहे साम डेविड को दोस्तों ने तीन साल पहले जन्मदिन पर अनोखा गिफ्ट दिया। साम की कोई बहन नहीं है, ये कमी उसे हमेशा खलती है। दोस्त उसे जन्मदिन पर चाइल्ड लाइन ले गए। यहां बच्चों के साथ उन्होंने जन्मदिन मनाया। इस दौरान चाइल्ड लाइन में रह रही बच्ची नंदिनी से उन्होंने साम को राखी भी बंधवाई। जन्मदिन पर गिफ्ट के रूप में बहन को पाकर साम काफी खुश हुआ। इसी के बाद से चाइल्ड लाइन से जुड़ गए। नंदिनी की पूरी पढ़ाई का खर्च अपनी पॉकेट मनी से उठा रहे हैं।

बच्चों के साथ लंच
शेयर एडवाइजरी कंपनी चलाने वाले वैभव दुबे अकसर अपना नाश्ता व लंच चाइल्ड लाइन में बच्चों के साथ करते हैं। वैभव बताते हैं, जब वह काफी छोटे थे, तभी शिर्डी से लौटते समय सडक़ हादसे में माता, पिता व बहन की मौत हो गई। रिश्तेदारों ने उसकी परवरिश की। माता, पिता के बिना बिताया समय काफी पीड़ा दायक रहा। इसी के बाद वे चाइल्ड लाइन जाकर बच्चों के साथ समय बिताने लगे।

मिलता है सुकून
विजय नगर निवासी रिया खुराना मुंबई में बीकॉम ऑनर्स की पढ़ाई कर रही है। उन्हें एक रिश्तेदार के माध्यम से चाइल्ड लाइन के बारे में पता चला तो वे उनके ऑफिस गई। यहां गरीब व जरुरतमंदो के लिए चलने वाली मस्ती की पाठशाला देखकर उन बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाना शुरू किया। रिया बताती हैं, इन बच्चों को पढ़ाने के बाद काफी सुकून मिलता है। इंदौर आने पर वे इन बच्चों के बीच समय बिताती है। हमेशा बच्चों की मदद करते रहना चाहती हैं।
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