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इंदौर

नर्मदा से पानी की जरूरत हुई पूरी तो तालाबों को भूल गए, अब 9 तालाबों का वाटर जोन खतरे में

पहाडि़यों पर निर्माण और बायपास के आसपास गुम हो गई जलधारा
– बायपास पर 15 से ज्यादा स्थानों पर आप देख सकते हैं, मृतप्राय जलधाराओं को- तीन नदियों सरस्वती, फत्तनखेड़ी व कान्ह की धाराएं भी हो गई अवरूध्द
– निहालपुर मुंडी का तालाब भर गया अतिक्रमण व हरी गाद से- बिलावली के स्त्रोत ही नहीं भर रहे तो कैसे भरेगा तालाब?

इंदौरAug 09, 2019 / 05:17 pm

हुसैन अली

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नर्मदा से पानी की जरूरत हुई पूरी तो तालाबों को भूल गए अब 9 तालाबों का वाटर जोन खतरे में

इंदौर. शहर में भूजल के गिरते स्तर की चिंता कर रहे प्रशासनिक व नगर निगम के अफसरों को पहले बायपास से रिंग रोड के बीच विकसित हो रहे क्षेत्रों में स्थित 9 तालाबों को उजडऩे से रोकने की जरूरत है। बायपास के राऊ चौराहे से रालामंडल तक एक ओर पहाडि़यां है, दूसरी ओर यह तालाब स्थित है। शहर की प्राकृतिक रचना ही कुछ इस तरह है, इन तालाबों को पहाडि़यों से बहने वाले पानी की जल संरचनाएं भरती रही हैं।
इन्हीं जल संरचनाओं से बायपास से शहर की ओर आने वाली सरस्वती, फत्तनखेड़ी और कान्ह नदी कलकल बहती थी। इनका प्रमाण बायपास पर दी गई पुलियाओं और तालाबों की ओर जा रही अवरोधित जल संरचनाओं के रूप में आज भी मौजूद है। यदि प्रशासनिक अफसर इन संरचनाओं को ही जिंदा कर लें तो शहर के एक हिस्से का जल भंडार फिर से जिंदा हो सकता है।
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मालवा के पठार पर बसे इंदौर शहर में पानी की जरूरत शुरूआत से ही तालाबों से होती रही हैं। होलकर राजाओं ने शहर के पहाड़ी इलाकों राऊ, मोरोद-माचल, रालामंडल, देवगुराडि़या की ओर से आने वाले पानी को रोकने के लिए 9 तालाब की रचना की थी। इसमें बिलावली तालाब का आकार बड़ा रखा और इससे शहर को पीने का पानी भी मिलने लगा।
इसके साथ ही शहर के अलग-अलग हिस्सों से बहने वाली नदियों को संरक्षित किया। राऊ से रालामंडल के बीच तीन नदी सरंचनाओं सरस्वती, फत्तनखेड़ी व कान्ह की धाराओं से यह तालाब भरते और नदियों की धाराएं कल-कल बहतीं। मध्य शहर में सभी नदियों की अलग-अलग धाराओं से मिल कर एक धारा बना कर बहती हैं।
1965 में आए जलसंकट के बाद शहर में नर्मदा से पानी लाया गया। इसके बाद हम इन तालाबों को भूलते गए। इन्हें भरने वाले केचमेंट एरिया में निर्माण होते चले गए। पहाडि़यों से नीचे की ओर बहने वाले पानी में अवरोध बनते चले गए। बायपास पर डिजाइन के तौर पर तो इन संरचनाओं को बचा लिया गया, वास्तविक जल क्षेत्र अवरूध्द हो गया। स्टार्म वाटर लाइन भी कुछ इस तरह डाली गई कि वह सूखी ही रहती है। अब इस वाटर जोन में एमआर-3 बनाने की तैयारी की जा रही है। जबकि यह एक वाटर सेंसेटिव जोन है।
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तालाब बन गए पोखर

मौजूदा हालात यह है, इन नौ तालाबों में से एक भी तालाब में पानी नजर नहीं आता है। इनकी चैनल सूखी पड़ी है। इन तक पहुंचने वाली जलधाराएं सूख गई हैं। एक भी तालाब में पानी नहीं है। उदाहरण के तौर पर देखें तो लिंबोदी में 2.11 मीटर पानी है, निहालपुर मुंडी में पानी आने पर चैनल शुरू हो रही है, पिपल्यापाला में 8 फीट पानी है। असरावद, नायता मुंडला, फूटा तालाब, बिजलपुर तालाब में पोखरनुमा पानी नजर आ रहा है।
बायपास 15 से पुलियाओं पर देखें प्रमाण

शहर की रचना के लिए मास्टर प्लान का मैप देखें, टोपोशीट देखें या जल संसाधन विभाग का मैप देखें तीनों में इन संरचनाओं को आसानी से चिन्हिंत किया जा सकता है। बायपास ने भले ही शहर के इस जलक्षेत्र को दो हिस्सों में बांट दिया, लेकिन इसकी डिजाइन कुछ इस तरह की गई, बायपास की पुलियाएं हर जलसंरचना की याद दिलाती हैं।
राऊ से रालामंडल के बीच ही 15 पुलियाएं हैं। इनके आसपास जलसंरचना मौजूद है, लेकिन अवरोधित है।

यदि बारिश के इस सीजन में आप जाकर देखेंगे तो इन सरंचानाओं के वजूद भी मिलते हैं। अनेक पहाडि़यों पर तो झरनों की तरह आज भी बह रही है।
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इनके उद्गम को भले ही शासन-प्रशासन ने नष्ट कर दिया। मोरेद माचल की पहाडि़यों पर निगम ने सरस्वती नदी के उद्गम के समीप ही प्रधानमंत्री आवास योजना की मल्टियां बन रही हैं।

अनेक पहाडि़यों पर तो बसाहट हो गई। बायपास को क्रॉस करती जल संरचानाओं पर दोनों ओर अतिक्रमण हो गए, मिट्टी भर गई। कुछ का पानी तो आज भी वहां के गहरे गड्डों में देखा जा सकता है।
ऐसे बन रही 9 तालाबों की सरंचना

सरस्वती नदी प्रवाह क्षेत्र- फूटा या राऊ तालाब, बिलावली, नेहरूवन
फत्तनखेड़ी नदी प्रवाह क्षेत्र – निहालपुर मुंडी, बिजलपुर और पिपल्यापाला

कान्ह नदी प्रवाह क्षेत्र – लिंबोदी, उमरिया-असरावद खुर्द, नायता मुंडला

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