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इंदौर

वर्ल्ड गर्ल्स चाइल्ड डे आज, 1 हजार लड़कों पर 944 हुई लड़कियां

– 2014 में एक हजार लड़कों पर थी 907 लड़कियां – जागरूकता से बढ़ रही इंदौर में लड़कियों की संख्या

इंदौरOct 11, 2019 / 10:57 am

Lakhan Sharma

वर्ल्ड गर्ल्स चाइल्ड डे आज, 1 हजार लड़कों पर 944 हुई लड़कियां

वर्ल्ड गर्ल्स चाइल्ड डे आज, 1 हजार लड़कों पर 944 हुई लड़कियां

लखन शर्मा, इंदौर। पिछले दिनों एक महिला ने भ्रूण परीक्षण करने वाले डॉक्टर का स्टिंग कर उसे सलाखों के पीछे भेजा था। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है समाज में परिवर्तन है और लोग लड़कियों के हक के लिए लड़ रहे हैं। दरअसल महिला का पति उसे भ्रूण परीक्षण करवाने के लिए ले गया था। महिला ने इसकी जानकारी जिला प्रशासन के अधिकारियों को दी और डॉक्टर व उसके सहयोगियों केा एफआईआर दर्ज करवाकर जेल भिजवाया। वहीं अगर आंकड़ो पर गौर करें तो इंदौर में लगातार बेटियों की संख्या में वृद्धि हो रही है। पिछले 6 सालों में लड़को और लड़कियों के अनुपात में 4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
धार्मिक मान्यताओं और शास्त्रों में हमारे यहां बेटी को पूजा जाता है। लेकिन कई रूढि़वादी परंपराओं के चलते लोग बेटों की चाह में बेटियों को कोख में ही खत्म कर रहे थे। लेकिन पिछले 6 सालों में इसमें तेजी से बदलाव आया है। 2014 में जहंा इंदौर में 1 हजार लड़कों पर 907 लड़कियां पैदा होती थी वहीं अब 1 हजार लड़कों पर अगस्त 2019 के ताजा अंाकड़े 944 लड़कियों के हैं। एसे में लगभग 4 प्रतिशत लड़कियां अधिक पैदा हो रही है, जो एक बड़ा आंकड़ा है। 11 अक्टूबर को दुनियाभर में वल्र्ड गल्र्स चाईल्ड डे मनाया जाता है। अक्टूबर 2012 से इसकी शुरूआत की गई थी, लड़कियों केा उनके अधिकार दिलवाने के लिए। समाज में उनको उचित स्थान दिलवाने के लिए। दरअसल रूढि़वादी परंपराओं के चलते कई प्रदेशों में बेटियों केा उचित स्थान नहीं मिलता था। यहां तक की बेटियों को कोख में ही खत्म कर दिया जाता था। लेकिन ताजा आंकड़े समाज में बदलाव की बयार को प्रदर्शित कर रहे हैं। हालांकि इसके पीछे प्रशासन की सख्ती और लोगों की कम बच्चों की चाह भी एक बड़ा कारण है। एक समय था जब इंदौर में बड़े पैमाने पर ***** परीक्षण और गर्भपात होता था। राजवाड़ा से एमटीएच कंपांउड के कई इलाके एसे थे जहां डॉक्टरो ंने नर्सिंग होम इसी की बदौलत खोल रखे थे। लेकिन जब इन पर सख्ती हुई तो ये एकाएक बंद होने लगे। इसके बाद लोग गर्भपात करवाने के लिए उज्जैन, देवास और धार जाने लगे। जिला प्रशासन के अधिकारियों ने वहां के प्रशासन केा अलर्ट किया और वहां भी इस पर कार्रवाई शुरू करवाई।


– इन कारणों से आए बदलाव
दरअसल इंदौर में 2007 में एक हजार लड़कों पर 862 लड़कियां थी। एसे में अगर 12 सालों की बात करें तो करीब 8 प्रतिशत लड़कों और लड़कियों के अनुपात में वृद्धि हुई है। 2007 से इंदौर में पीसीपीएनडीटी की कमान कमान सतीश जोशी संभाल रहे हैं। इन्होंने एक विशेषज्ञ डॉक्टरों, समाजसेवियों की टीम बनाई और एसे सोनोग्राफी सेंटर जो भ्रूण परीक्षण करते हैं उन पर नजर रखना शुरू किया। धीरे धीरे कई सेंटरों पर छापेमारी कार्रवाई हुई। करीब एक दर्शन सेंटरों पर कानूनी कार्रवाई हुई तो सख्ती की वजह से लड़कियों का अनुपात बढऩे लगा। लेकिन अब भी दबे छिपे कहीं न कहीं भ्रूण परीक्षण होते रहते थे।

– ट्रेकर से लगी पाबंदी
2014 में तत्कालीन कलेक्टर आकाश त्रिपाठी को जब भ्रूण परीक्षण के मामले की जानकारी लगी तो उन्होंने इस पर सख्ती की योजना बनाई। उन्होंने पुने की कंपनी को काम दिया जिसने स्मार्ट चिप ट्रेकर सोनोग्राफी मशीनों में लगाई। जिसमें गर्भवती महिला का फार्म भरवाने के साथ ही उसकी आनलाईन जानकारी जिला प्रशासन के पास भी जाती थी। इसमें सोनोग्राफी का आंकड़ा पीसीपीएनडीटी एक्ट के तहत विभाग में अधिकारियों के पास पहुंचने लगा। एसी टीम बनाई जो सोनोग्राफी के बाद से गर्भवती महिला की डिलेवरी होने के बाद उससे संपर्क करती जिससे पता चले की बच्चा पैदा हुआ या नहीं।

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