– इन कारणों से आए बदलाव
दरअसल इंदौर में 2007 में एक हजार लड़कों पर 862 लड़कियां थी। एसे में अगर 12 सालों की बात करें तो करीब 8 प्रतिशत लड़कों और लड़कियों के अनुपात में वृद्धि हुई है। 2007 से इंदौर में पीसीपीएनडीटी की कमान कमान सतीश जोशी संभाल रहे हैं। इन्होंने एक विशेषज्ञ डॉक्टरों, समाजसेवियों की टीम बनाई और एसे सोनोग्राफी सेंटर जो भ्रूण परीक्षण करते हैं उन पर नजर रखना शुरू किया। धीरे धीरे कई सेंटरों पर छापेमारी कार्रवाई हुई। करीब एक दर्शन सेंटरों पर कानूनी कार्रवाई हुई तो सख्ती की वजह से लड़कियों का अनुपात बढऩे लगा। लेकिन अब भी दबे छिपे कहीं न कहीं भ्रूण परीक्षण होते रहते थे।
– ट्रेकर से लगी पाबंदी
2014 में तत्कालीन कलेक्टर आकाश त्रिपाठी को जब भ्रूण परीक्षण के मामले की जानकारी लगी तो उन्होंने इस पर सख्ती की योजना बनाई। उन्होंने पुने की कंपनी को काम दिया जिसने स्मार्ट चिप ट्रेकर सोनोग्राफी मशीनों में लगाई। जिसमें गर्भवती महिला का फार्म भरवाने के साथ ही उसकी आनलाईन जानकारी जिला प्रशासन के पास भी जाती थी। इसमें सोनोग्राफी का आंकड़ा पीसीपीएनडीटी एक्ट के तहत विभाग में अधिकारियों के पास पहुंचने लगा। एसी टीम बनाई जो सोनोग्राफी के बाद से गर्भवती महिला की डिलेवरी होने के बाद उससे संपर्क करती जिससे पता चले की बच्चा पैदा हुआ या नहीं।