दरअसल 2 हफ्ते का लॉकडाउन बढ़ने से भारत अपनी विकास गति में और पीछे पहुंच जाएगा। हवा में उड़ने वाले लोग ( एयरलाइंस कंपनीज) डूबने की कगार पर पहुंच जाएंगे तो वहीं हर दिन कमाने-खाने वाला पंक्ति का सबसे आखिरी आदमी की मुश्किलें विकराल रूप ले लेंगी। लेकिन इस सबके बीच एक और बात है वो ये कि इस महामारी से निपटने के लिए मेडिकल मोर्चे पर हम कितने तैयार है, क्योंकि अगर हमारी तैयारी वहां पर काफी नहीं है तो लॉकडाउन बढ़ाने का परिणाम वैसा कभी नहीं मिलेगा जैसी हम उम्मीद कर रहे हैं।
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कोरोना से कैसे निपटेगा भारत-
सरकार ने पहले ही बयान दे दिया है कि कोरोना की संजीवनी हमारे पास भरपूर मात्रा में है, और इसके लिए हमें परेशान होने की बिल्कुल जरूरत नहीं है। लेकिन क्या हमारे पास वेंटीलेटर, मेडिकल स्टॉफ इक्विपमेंट भी जरूरत के हिसाब से हैं।
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21 दिनों के लॉकडाउन लगाए जाने के बाद पीएम मोदी ने कोविड-19 से निपटने की तैयारियों का एक सर्वे कराया था । इस सर्वे में पता चला कि ज्यादातर जिलों में मेडिकल स्टाफ, इक्विपमेंट, आईसीयू बेड, वेंटिलेटर, एम्बुलेंस और ऑक्सीजन सिलेंडरों की कमी है। वहीं पूर्वोत्तर राज्यों समेत कई इलाकों में मेडिकल स्टाफ को ट्रेनिंग देने की जरूरत भी सामने आई है।
सोशल डिस्टेंसिंग है सरकार का हथियार-
इटली जैसे देश जहां की हेल्थ केयर फैसिलिटी दुनिया की बेस्ट फैसिलिटी ( इटली की मेडिकल फैसिलिटी दुनिया में 6ठे नंबर पर मानी जाती थी) में गिनी जाती है। वहां इस महामारी के तांडव को देखने के बाद भारत में जरा सी लापरवाही हमें कितनी भारी पड़ सकती है। ये सोचना भी खतरनाक है। ये बात भारत सरकार अच्छी तरह से समझती है। यही वजह है कि जैसे ही इस बीमारी ने देश में पांव पसारने शुरू किये सरकार ने लॉकडाउन की घोषणा कर दी। लॉकडाउन बढ़ाने का फैसला लेने की भी सबसे बड़ी वजह हमारा कमजोर इंफ्रा है और इसीलिए सरकार ने सोशल डिस्टेंसिंग को अपना सबसे बड़ा हथियार बनाया है।
क्या हैं भारत में हालात- भारत में फिलहाल 7 हजार से ज्यादा लोग इस बीमारी की चपेट में हैं, और ये आंकड़ा फिलहाल लगातार बढ़ता जा रहा है। अगर यही स्पीड रही तो 1-2 दिन में ये आंकड़ा 10 हजार को पार कर लेगा।