आयकर विभाग का मानना है कि मार्केटिंग कॉस्ट भी पूंजीगत व्यय का हिस्सा
इनके साथ और भी ई-कॉमर्स कंपनियां ग्राहकों को दिए जाने वाले छूट को मार्केटिंग खर्च मानती है और इसके लिए रेवेन्यू से टैक्स काटना इन कंपनियों के लिए घाटे का सौदा साबित हो सकता है। वहीं इनकम टैक्स डिपार्टमेंट का मानना है कि अब इसे मार्केटिंग कॉस्ट नहीं माना जाना चाहिए बल्कि इसे भी अब पूंजीगत व्यय के तौर पर देखा जाना चाहिए। और इसलिए इन्हे रेवेन्यू में कमी करके नहीं दिखाया जाना चाहिए। आयकर विभाग ने अपने एसेसमेंट ऑर्डर में अपनी बातों को जस्टिफाई करते हुए ये दावा किया है कि, किसी भी ई-कॉमर्स कंपनी का मार्केटिंग कॉस्ट उसके कैपिटल एक्सपेंडिचर में इसलिए जोड़ा जाना चाहिए क्योंकि इससे वो अपने भविष्य में आने वाले रेवेन्यू को बढ़ा रही है।
कमीशनर ऑफ इनकम टैक्स ने सुनवाई पर अभी कोई फैसला नहीं दिया
यदि आयकर विभाग की बातों को मान लिया जाए तो ई-कॉमर्स कंपनियों को छूट से होने वाले मुनाफे पर भी टैक्स देय होगा। आयकर विभाग ने ये आदेश पिछले साल ही दिया था और यह सभी ई-कॉमर्स कंपनियों पर लागू होता है। फ्लिपकार्ट और अमेजन की इस अपील पर सुनवाई भी हुई थी लेकिन कमीशनर ऑफ इनकम टैक्स ने इस पर कोई फैसला नहीं लिया था। एक्सपर्ट्स का मानना है कि राजस्व विभाग का इसपर स्टैंड से कई स्टार्ट-अप केलिए पिटारा खुल सकता है क्योंकि इससे ये पता चलता है कि एंटरप्रेन्योर्स को अपना बिजनेस कैसे चलाना है।
यदि इस तरह से टैक्स की मांग होती है तो बीटूसी के आधार पर कार्य करने वाली ई-कॉमर्स कंपनियों और एफएमसीजी कंपनियो सहित कई स्टार्ट-अप को टैक्स की मार झेलनी पड़ सकती है। अशोक महेश्वरी एंड एसोसिएट्स के पार्टनर अमित महेश्वरी का कहना है कि, टैक्सपेयर्स को ये तर्क देना पड़ेगा कि इस तरह के खर्च बिजनेस को आगे बढ़ाने के लिए और आजकल के इस बढ़ते कम्पटीशन के दौर में जरूरी है। मौजूद समय में टैक्स लॉ में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके तहत कंपनियों बिजनेस को आगे बढ़ाने के लिए टोटल रेवेन्यू से मार्केटिंग कॉस्ट नहीं काट सकती है।