कंपनी ने खुद किया दावा एक तरफ बाकी ऑटो कंपनियां मंदी का दम भर रही है तो वहीं दूसरी ओर लेम्बोर्गिनी का दावा है कि Urus की दुनियाभर में अच्छी मांग है। भारत में भी यह सफल रही है। कंपनी को इस SUV के लिए 50 से अधिक की बुकिंग मिल चुकी है। इसका वेटिंग पीरियड 6-8 महीने का है।
क्या है ऑटो सेक्टर में मंदी की हकीकत ऑटो सेक्टर में सच में मंदी है या बस हवा है, इसी पर बात करते हुए कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के हेड प्रवीण खंडेलवाल ने पत्रिका को बताया कि अगर ऑटोमोबाइल क्षेत्र में मंदी है, तो एमजी हेक्टर की बुकिंग कुछ ही दिनों में 21000 पार कर गई और कंपनी को बुकिंग बंद करनी पड़ी क्योंकि यह प्रति माह केवल 2000 वाहनों का उत्पादन कर सकती थी। टाटा मोटर्स ने अपनी कारों के प्रो संस्करण को लॉन्च किया डेमलर ने नई ऑनलाइन दुकान शुरू की, महिंद्रा एक्सयूवी 500 की कीमतें बढ़ गई हैं और इसी तरह ओला और उबर की बिक्री प्रति माह क्यों बढ़ रही है। क्योंकि यदि वास्तव में मंदी होती तो ऐसा नहीं हुआ होता ।
बिना वजह मुद्दा बना रही ऑटो कंपनियां ऑटोमोबाइल सेक्टर में तथाकथित आर्थिक मंदी को बिना वजह का मुद्दा बताते हुए खंडेलवाल ने कहा कि सरकार ने घोषणा की है कि नए बीएस 6 उत्सर्जन मानदंड 1 अप्रैल 2020 से लागू किए जाएंगे। इस तिथि के बाद सभी वाहनों को उनका अनुपालन करना होगा । इन कड़े उत्सर्जन नियम का अनुमोदन सुप्रीम कोर्ट ने भी किया है । अप्रैल, 2020 के बाद प्रत्येक ऑटोमोबाइल निर्माता BS-6 मानदंडों वाले वाहनों का उत्पादन करने के लिए बाध्य है, जो उन्हें अपने विनिर्माण सुविधा में काफी निवेश के साथ बदलाव लाने के लिए मजबूर करते हैं और ऐसा प्रतीत होता है कि ऑटोमोबाइल निर्माता अपनी उत्पादन लाइन में बदलाव लाने के मूड में नहीं हैं क्योंकि इस बदलाव हेतु उन्हें एक बड़ी पूँजी अपने पास से कहानी होगी। हालांकि कुछ निर्माताओं ने पहले ही प्रक्रिया शुरू कर दी है जो एक स्वागत योग्य कदम है। चूंकि निर्माताओं और डीलरों दोनों के पास पर्याप्त बीएस 4 वाहन उपलब्ध हैं, विनिर्माण इकाइयों में से कुछ ने शुद्ध रूप से उत्पादन बंद कर दिया है क्योंकि वे मार्च, 2020 तक बीएस 4 वाहनों को बेच कर अपना स्टॉक ख़त्म करना चाहते हैं। इलेक्ट्रिक वाहनों को लाने का सरकार का निर्णय भी एक अन्य प्रमुख कारक है ऑटोमोबाइल निर्माताओं को चिंता है क्योंकि वे इन बदलावों के लिए तैयार नहीं हैं। इन कारणों से, ऑटोमोबाइल निर्माताओं द्वारा उनके सेक्टर में गहरी मंदी का ज़ोरदार प्रचार कर सरकार पर नाहायज दबाव बनाया जा रहा है ।