रेरा की संवैधानिक बैधता को दी थी चुनौती देश के कई रियल एस्टेट डवलपर्स और कुछ प्लाट के मालिकों ने अपनी याचिकाओं में रेरा की संवैधानिक वैधता को चुनैती दी थी। जिसे जस्टिस नरेश पाटिल और जस्टिस जस्टिस राजेश केतकर की पीठ ने इस पर फैसला सुनाया।
मौजूदा प्रोजक्ट्स पर भी राहत बॉम्बे हाईकोर्ट ने रेरा के कानून को चल रहे मौजूदा प्रोजेक्ट्स पर भी लागू रखने का फैसला दिया है। वहीं डवलपर्स को के लिए भी थोड़ी गुजाइंश रखी है। हाईकोर्ट ने राज्य स्तरीय रेरा अथॉरिटी व अपीलीय ट्रिब्यूनल से कहा है कि वे प्रोजेक्ट्स में देरी के मामलों में अलग-अलग आधार पर विचार करें तथा उन मामलों में किसी परियोजना या डेवलपर के पंजीकरण को रद्द नहीं किया जाए।
देश भर में की गई थी याचिकाएं इस कानून को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं देश भर के कई उच्च न्यायालयों में दाखिल की गई थीं। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अन्य अदालतों में इससे संबंधित प्रक्रिया पर रोक लगाई और बंबई उच्च न्यायालय को सुझाव दिया कि वह रेरा मामलों की सुनवाई पहले करे। शीर्ष अदालत ने कहा कि था कि अन्य अदालतों को रेरा से जुड़े मामलों पर सुनवाई से पहले बंबई उच्च न्यायायल के फैसले का इंतजार करना चाहिए।
क्या थी बिल्डर्स की आपत्ति देश भर के कई बिल्डर्स ने रेरा के सेक्शन 3 को लेकर आपत्ति जताई थी। जिसके तहत मौजूदा प्रॉजेक्ट्स के रजिस्ट्रेशन को भी अनिवार्य किया गया है, जिनका कंप्लीशन सर्टिफिकेट 1 मई, 2018 या उसके बाद मिलना है। बिल्डर्स का कहना था कि इसके चलते उन्हें बीते समय में हुई देरी का भी नुकसान उठाना पड़ेगा। इसके अलावा बिल्डर्स ने कुछ प्रावधानों को भी खत्म करने की मांग की थी। जैसे, बायर्स से मिली रकम के 70 फीसदी हिस्से को एक अलग अकाउंट में जमा करना और प्रॉजेक्ट की डेडलाइन को एक साल से अधिक न बढ़ाना। यही नहीं पूर्व में तय की गई तारीख पर प्रॉजेक्ट की डिलिवरी न कर पाने पर बायर्स को जुर्माना देने के नियम पर भी बिल्डर्स को आपत्ति है।