14 अगस्त, 1942 को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भूमि तलैया से तिरंगा यात्रा निकाली गई। इस बीच बड़ा फुहारा घमंडी चौक पुरानी लाइब्रेरी के पास अंग्रेजी पुलिस ने फायरिंग कर दी। इसमें सेनानी गुलाब सिंह पटेल शहीद हो गए। उन्हें सिर पर गोली लगी थी। इस बीच यात्रा में शामिल गुलाब चंद्र नामदेव को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। उन्हें एक साल की सजा सुनाई गई। इसकी जानकारी उनके छोटे भाई रतनचंद्र नामदेव को मिली तो उन्होंने अंग्रेजों से बदला लेने की ठानी।
निवाड़गंज में दिखाया दम
रतनचंद्र निवाड़गंज पहुंचे और अंग्रेजों की पुलिस चौकी में आग लगा दिया। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. रतनचंद्र नामदेव के पुत्र मनोज नामदेव ने बताया कि उनके भीतर देशभक्ति का जोश था। वे अंग्रेजी हुकूमत के सख्त विरोधी रहे। चौकी फूंकने के बाद उनकी गिरफ्तारी के साथ ही कोतवाली से एनकाउंटर का आदेश जारी हुआ। इस पर वे भूमिगत हो गए। अंग्रेजों ने उन्हें खूब तलाशा, लेकिन वे नहीं मिले।
आजादी के बाद बसाया घर
देश के आजाद होने के बाद रतनचंद्र नामदेव जबलपुर लौटे तो मां ने कहा, घर बसा लो। उन्होंने मीराबाई नामदेव से विवाह किया। उनकी सात संतानें हुईं। छह पुत्र एक पुत्री। मनोज नामदेव ने बताया कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रतनचंद्र नामदेव ने जीवनभर किसी प्रकार की पेंशन या सुविधां नहीं ली। उनकी मृत्यु 10 सितंबर 1995 को हुई। उनकी पत्नि मीरा बाई 92 वर्ष की हैं। वे अक्सर उनकी स्मृतियों को हमसे साझा करती हैं।
तलत महमूद के पास पहुंचे
इस बीच रतनचंद्र नामदेव ने बंबई में एक टेलर के यहां शरण ली। अंग्रेजों को इसका पता चला तो वे दूसरी जगह चले गए। फिर उनकी मुलाकात गजल गायक तलत महमूद से हुई। उन्होंने उनके साथ काम करना शुरू कर दिया। वे मटका संगीत के जानकार थे। उन्होंने तलत महमूद के कई प्रसिद्ध गजलों में मटका संगीत दिया। इस बीच अंग्रेज उनकी मां को यातना देते रहे। उनकी मां हीराबाई नामदेव ने कह दिया कि तुम ही ढूंढ़ लो। वह देशभक्त किसी के हाथ नहीं आएगा।