लोकमान्य की हुंकार से सभास्थल का तिलक भूमि तलैया हो गया नाम
आखिरकार 8 अक्टूबर, 1917 को वह घड़ी आ गई, जब वे प्रयागराज से होते हुए जबलपुर रेलवे स्टेशन पहुंचे। यहां राजबहादुर भार्गव ने उन्हें हस्तलिखित अभिनंदन पत्र सौंपा। फिर अलफ खां की तलैया (वर्तमान में तिलक भूमि तलैया) में स्वागत सभा का आयोजन हुआ।
जोश भरा संबोधन
यहां तिलक ने क्रांतिकारियों में जोश भरने वाला सम्बोधन दिया। सभा की अध्यक्षता पं. विष्णुदत्त शुक्ला ने की थी। उसी दिन से इस स्थल की पहचान तिलक भूमि तलैया के नाम पर हो गई, जो अमिट हो गई। लोकमान्य तिलक की जबलपुर में दूसरी सभा 1920 में हुई थी। हालाकि उक्त स्थल पर वर्ष 1800 के पहले तक तलैया थी। यह पूरा क्षेत्र अलख खां के कब्जे में था, इसलिए तलैया का नाम भी उनके नाम पर था। बाद में इसे मराठों ने मुक्त कराया था।
आज बदहाल है तलैया
देश की आजादी के बाद लोग तिलक भूमि की मिट्टी गर्व से अपने मस्तक पर सजाया करते थे। देखरेख के अभाव में स्वतंत्रता संग्राम का यह स्थल बदहाल होता जा रहा है। अधिकतर समय यहां कचरे का ढेर लगा रहता है। वाहनों की मनमानी पार्किंग होती है। इस स्थल को संरक्षित करने के लिए नगर निगम, जिला प्रशासन की ओर से कोई पहल नहीं हो रही है।
50 से ज्यादा आंदोलन हुए थे
इतिहासकार व पुरातत्वविद् राजकुमार गुप्ता ने बताया की तिलक भूमि तलैया में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान 50 से ज्यादा आंदोलन हुए। पं. विट्ठल भाई पटेल, राजगोपालाचारी, डॉ. राजेंद्र प्रसाद भी सभाओं में शामिल हुए। यहां अंतिम स्वतंत्रता संग्राम की सभा भी हुई थी।