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जबलपुर

मांगने से नहीं मिलता मोक्ष

दयोदय तीर्थ में चातुर्मास कर रहे आचार्य विद्यासागर महाराज ने कहा

जबलपुरSep 21, 2021 / 06:42 pm

Sanjay Umrey

Aachary Vidhyasagar Maharaj in Jabalpur

Aachary Vidhyasagar Maharaj in Jabalpur

जबलपुर। दयोदय तीर्थ में चातुर्मास कर रहे आचार्य विद्यासागर महाराज ने कहा कि मोक्ष की इच्छा मांगने से पूरी नहीं होती। मांगने से मोक्ष मिलने की सम्भावनाएं कम होती हैं। अच्छा खिलाड़ी यह नहीं देखता कि परिणाम क्या होने वाला है? वह समय देखता है और खेलता जाता है। इसी तरह अभी आप भी मोक्ष मार्ग के लिए कर्मों की निर्जरा करने के लिए लगे रहें, इसका फल मुक्तितो मिलना ही है ।
कर्तव्य करते चलें
आचार्यश्री ने कहा कि पर्युषण पर्व समाप्त हो गए। आप लोगों ने एक आसन, उपवास, यदुउपवास आदि के माध्यम से अपनी आत्मा के ऊपर संस्कार डाले हैं। संस्कार डालना किसान की भांति कर्तव्य करना है। हमें आने वाली फसल की ओर नहीं देखना। हमें उसकी चिंता भी नहीं करना। किंतु, वर्तमान में जो हमारे कर्मों की निर्जरा हो रही है, गुरुओं की कृपा से हमें इस पर विश्वास हुआ है।
अंतिम तत्व मोक्ष
उन्होंने कहा कि तात्कालिक फल मिल ही चुका है। श्रावक सोचता है, आप बहुत दूर हैं। लेकिन, हमने स्थापना से आपको यहीं विराजमान कर लिया है। भावों की निर्जरा हो गई, तो सार तत्व तो है, तब अंतिम तत्व तो मोक्ष तत्व है। कर्मों की निर्जरा हो गई, तो फिर मोक्ष की ही इच्छा है।
ध्यान के द्वारा मोक्ष होता है
किसान सोचता है मेरे हाथ में बीज है। धरती तपी हुई है। घटाएं ऊपर से आ गई हैं। हम अपना उपक्रम करें। इसी खेती की भांति हमें मोक्ष मार्ग में तात्कालिक फल मिलता है। किसी ने पूछा कि ध्यान का फल क्या मिलता है? यह सब ने सुन रखा है कि जब तक मरे नहीं तब तक स्वर्ग नहीं मिलता। शास्त्रों में यह लिखा है कि मोक्ष उसी को होगा, जो इस प्रकार के मार्ग पर चलेगा। ध्यान के द्वारा मोक्ष होता है और जब तक मोक्ष नहीं होता स्वर्ग तो होता ही है ।
घड़ी की भांति निर्जरा चलती है
आचार्य श्री ने कहा कि जिस दिन आपने ध्यान लगया उसी समय सम्यक दृष्टि श्रावको की असंख्यत संचित कर्मों की निर्जरा होती है। यह सूत्र आपकी अपनी योग्यता और सीमा के अनुसार है। ध्यान बदल भी सकता है। लेकिन, आपने गुणस्थान पर जो संकल्प लिया है, वह कभी नहीं बदलता। जिस तरह पेड़ को जड़ से हिला कर रख दिया तो पेड़ धीरे-धीरे मुरझाने जाने लगता है। जमीन से उसकी जड़ें निकल चुकी हैं। इसी तरह श्रावक अनंत अनुबंध की जड़ें हिला देता है, तो फिर इस से कर्म निर्जरा होती है।

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