कुशोत्पाटिनी अमावस्या के दिन साल भर के धार्मिक कृत्यों के लिये कुश एकत्र लेते है। प्रत्येक धार्मिक कार्यों के लिए कुशा का इस्तेमाल किया जाता है। शास्त्रों में भी दस तरह की कुशा का वर्णन प्राप्त होता है, जिस कुशा का मूल सुतीक्ष्ण हो, इसमें सात पत्ती हो, कोई भाग कटा न हो, पूर्ण हरा हो, तो वह कुशा देवताओं तथा पित्त, दोनों कृत्यों के लिए उचित मानी जाती है। कुशा तोड़ते समय ‘हूं फट्’ मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।
इन बातों का रखें ध्यान तो पितर होंगे प्रसन्न
अमावस्या पर किसी भी इंसान को श्मशान घाट या कब्रिस्तान में या उसके आस-पास नहीं घूमना चाहिए। अमावस्या के दिन सुबह देर तक सोते ना रह जाएं। जल्दी उठें और पूजा-पाठ करें। अमावस्या के दिन स्नान का खास महत्व है। इसलिए स्नान करने के बाद सूर्य देव को अघ्र्य देना नहीं भूलें। पीपल की पूजा करने से शुभ फल प्राप्त होते हैं लेकिन शनिवार के अलावा अन्य दिन पीपल का स्पर्श नहीं करना चाहिए। अमावस्या के दिन लहसुन-प्याज जैसी तामसिक चीजें भी न खाएं। इस दिन चटाई पर सोना चाहिए तथा शरीर में तेल नहीं लगाना चाहिए, दोपहर में न सोएं। शेव, हेयर और नेल कटिंग ना करें। इन कामों को भी वर्जित किया गया है। अमावस्या पर घर में पितरों की कृपा पाने के लिए घर में कलह का माहौल बिल्कुल नहीं होना चाहिए। लड़ाई-झगड़े और वाद-विवाद से बचना चाहिए। इस दिन कड़वे वचन बिल्कुल नहीं बोलने चाहिए। अगर व्रत रखा है तो शृंगार करने से बचें, सादगी अपनाएं। अमावस्या पर शिवपूजा फलदायी होती है।