ग्राहकों की भी गलती
डेयरी से बिल नहीं दिए जाने के मामले में जानकारों का कहना है कि गलती आम ग्राहकों की भी है। कुछ संगठनों ने तो लाइसेंस और बिल को लेकर कोर्ट में मामला दायर किया था। वहां से डेयरी काउंटर वालों के खिलाफ फैसला भी आया। लेकिन, डेयरी संचालक कार्रवाई से इसलिए बच जाते हैं, क्योंकि उनके खिलाफ कोई शिकायत नहीं करता। प्रशासन भी अपनी तरफ से कार्रवाई नहीं करता। प्रशासन के जिम्मेदार इस आड़ में अपनी नाकामी छिपा जाते हैं कि उनके पास बिल नहीं दिए जाने की शिकायत ही नहीं आती। उधर, आम लोगों का कहना है कि वे झंझट में पडऩा नहीं चाहते। कौन रोज-रोज बिल मांगे। वहीं, घर तक दूध पहुंचाने वाले ‘भरोसे की खेतीÓ वाली कहावत पर व्यसाय करते हैं। लोगों का कहना है कि दूध की जांच करना आसान नहीं है। ऐसे में जो मिलता है, वही ले लेते हैं।उपभोक्ताओं के हित में काम करने वालों का कहना है कि ग्राहकों को जागरूक होना होगा। वे अपने अधिकारों को समझेंगे, तो भी व्यवसायी नियम-कानून से काम करेंगे। उपभोक्ताओं को लगता है कि बिल लेना चाहिए, तो उन्हें अधिकारपूर्वक डेयरी वालों से मांगना ही चाहिए। बिल नहीं देने को लेकर डेयरी काउंटर चलाने वालों से चर्चा की गई, तो ज्यादातर का कहना था कि इसकी खास जरूरत नहीं पड़ती। लोग बिल मांगते नहीं, इसलिए वे देते नहीं। वहीं, नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के डॉ. पीजी नाजपांडे का कहना है इसके लिए वे अदालत तक गए। लेकिन, गलती आम लोगों की भी है। आखिर उनके सहयोग के बिना दूध डेयरी काउंटर चलाने वालों पर दबाव कैसे बनाया जा सकता है? लोग जागरूक होंगे, तो डेयरी वाले बिल देने लगेंगे। साथ में प्रशासन पर भी दबाव बढ़ेगा। वे भी सिर्फ शिकायत आने का इंतजार नहीं करेंगे।