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समाज और सिस्टम को सोचना होगा कि आखिर सभ्य समाज में दरिंदे पैदा कैसे हो रहे हैं?
जबलपुर•Mar 18, 2018 / 02:20 am•
shyam bihari
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आज से पूरा शहर आदिशक्ति की आराधना में लीन होगा। नवदेवियों की पूजा में संस्कारों, कर्मकांडों और भावनाओं का सागर उमड़ेगा। इस पावन पर्व का दूसरा अर्थ स्त्री शक्ति ? का सम्मान भी है। लेकिन, नवरात्र के ठीक एक दिन पहले 10 साल की बच्ची के साथ दरिंदगी और एक मां की मृत्यु पर बेटे का अंतिम संस्कार से इनकार, निश्चित ही अप्रिय और शर्मसार करने वाले कृत्य हैं। उस पर बेशर्म सरकारी सिस्टम की ओर से हैवानियत की शिकार बच्ची को इलाज के लिए भटकाना संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है। दुराचारी दरिंदे ने वह किया, जिसकी क्रूरतम सजा भी कम कही जाएगी। लेकिन, सरकारी सिस्टम ने जो चेहरा दिखाया, वह भी चुल्लूभर पानी में डूब मरने जैसा है। यह सच है कि पूरा समाज और सरकारी सिस्टम बुरा नहीं होता। लेकिन, समाज और सिस्टम को सोचना होगा कि आखिर सभ्य समाज में दरिंदे पैदा कैसे हो रहे हैं? उन्हें इस तरह वारदात करने की हिम्मत कहां से मिल रही है? यह सिस्टम और समाज दोनों के लिए चिंतनीय है। इस तरह के दरिंदे समाज में हैं, तो जिम्मेदारों को समझना होगा कि उनके हाथ से कुछ निकल रहा है। कोई न कोई कमी जरूर है, जिसके चलते रूह कंपा देने वाले अपराध सामने आ रहे हैं। समाज में रिस रही आपराधिक प्रवृत्ति महिलाओं, बच्चियों की आत्मा पर वार कर रही है। इससे हर रोज दिल दहलाने वाली वारदातें सामने आ रही हैं। जबकि, सरकारी सिस्टम में कुछ लोग इतने पत्थर दिल हैं कि मासूम की चीत्कार उनके कानों तक नहीं पहुंचती। एक वृद्धा का लावारिस हालत में मृत मिलना भी हाहाकारी है, क्योंकि उसका बेटा अंतिम संस्कार करने नहीं पहुंचा। भला हो समाजसेवी संगठन का, जिसने अंतिम विदाई दी। एक जवान बेटा अपनी मां को मरने के लिए छोड़ दे, तो कहा जाएगा कि समाज में संवेदनाएं मरती जा रही हैं। इस चिंताजनक हालात को बदलने के लिए संस्कारों को मजबूत करना होगा। सिस्टम को संवेदनशील और समाज को जिम्मेदार बनना होगा। – श्याम बिहारी सिंह
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