ऐसे एक पीड़ित के परिवार वाले ऑपरेशेन के बाद की इंजेक्शऩ के लिए दर-दर भटकने लगे। उनका कहना है कि उन्होंने प्रशासनिक अधिकारियों से भी संपर्क करने का प्रयास किया लेकिन देर रात तक इंजेक्शन नहीं मिल पाया। दवा मार्केट के बड़े सप्लायरों ने भी इंजेक्शन देने से हाथ खड़े कर दिए। ऐसे में अब परिवारज अब जाएं तो कहां जाएं। पारिवारिक जनो के अनुसार फंगस ने मरीज की आंख को पूरी तरह घेर लिया था, जिसे ऑपरेशन कर निकालने का निर्णय लिया गया। अस्पताल प्रबंधन ने परिवारजनों को बताया कि ऑपरेशन के बाद लगने वाले एंटी फंगल इंजेक्शन नहीं हैं। अब इस इंजेक्शऩ का इंतजाम परिवार के लोगों को ही करना होगा। ऑपरेशऩ के बाद की इंजेक्शऩ का इंतजाम न होते हुए भी चिकित्सकों ने ऑपरेशन कर मरीज की संक्रमित आंख निकाल तो दी। लेकिन उसके बाद की पीड़ा से वह मरीज बुरी तरह से परेशान है और परिजन इंजेक्शन के लिए दर-दर भटक रहे हैं।
इधर जिले में ब्लैक फंगस के मरीजों की तादाद लगातार बढ़ती ही जा रही है। सिर्फ नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज अस्पताल में ब्लैक फंगस के संदिग्ध अवस्था में मरीजों की संख्या बढ़कर 22 हो गई है। अस्पताल प्रशासन के मुताबिक शनिवार को 3 मरीजों के ऑपरेशन किए गए। मरीजों के मुंह में संक्रमण हो गया था जिसके चलते जबड़े काटने पड़े। दो मरीजों का ऑपरेशन कर उनकी आंखों की रोशनी बचाई गई। एक मरीज का ऑपरेशन नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज अस्पताल तथा दूसरे का जबलपुर हॉस्पिटल में किया गया।
मेडिकल कॉलेज नाक कान गला रोग विभागाध्यक्ष डॉक्टर कविता सचदेवा ने बताया कि छतरपुर से आई महिला की आंख में ब्लैक फंगस का संक्रमण हो गया था। शुरुआती जांच करने पर लगा कि महिला की आंख निकालनी पड़ सकती है। लेकिन शनिवार को ऑपरेशन के दौरान चिकित्सकों की टीम ने महिला की आंख बचाने में सफलता पा ली। नाक के रास्ते आंख के संक्रमित हिस्से से फंगस को अलग कर महिला की आंख की रोशनी बचाई जा सकी। जबलपुर हॉस्पिटल के डायरेक्टर मैक्सो फेशियल सर्जन डॉ राजेश जी रावण ने बताया कि रांझी निवासी युवक का ऑपरेशन किया गया। संक्रमित से फंगस को निकालकर आंख की रोशनी बचाई गई।