नागरिकों को बेहतर सेवाएं मुहैया कराने व उनमें गुणवत्ता देने नवचार करना आवश्यक है, लेकिन डिजिटाइजेशन के नाम पर अनावश्यक व्यय न हो ये सुनिश्चित करेंगे। डिजिटल सेवाओं को बेहतर करने ठोस कदम उठाएंगे।
-आशीष कुमार, आयुक्त, नगर निगम
जे कार्ड, आरएफआइडी, सोलर डस्टबिन, वेस्ट टू एनर्जी प्लांट का एक जैसा हाल
जबलपुर•Jul 08, 2019 / 01:29 am•
shyam bihari
kachara
इन नवाचारों के लिए मिले नेशनल अवॉर्ड
-जे कार्ड सुविधा मेट्रो बस में यात्रा से लेकर अन्य डिजिटल भुगतान के लिए
-डोर टू डोर कचरा संग्रहण की मॉनीटरिंग बेहतर करने घरों में आरएफआइडी चिप
-कचरा से बिजली बनाने वेस्ट टू एनर्जी प्लांट
जबलपुर। मेट्रो बस यात्रा से लेकर नगर निगम की अन्य सेवाओं में डिजिटल भुगतान के लिए जे कार्ड की सेवा शुरू की। कचरा संग्रहण की निगरानी व्यवस्था बेहतर करने घरों में आरएफआइडी चिप लगाई गई। कचरा से बिजली बनाने वेस्ट टू एनर्जी प्लांट लगाया गया। जीपीएस आधारित कचरा संग्रहण के लिए शहरभर में सोलर डस्टबिन रखी गईं। इन नवाचारों के लिए नगर निगम जबलपुर ने नेशनल अवॉर्ड भी हासिल किए। इन सब के बाद नतीजा ढाक के तीन पात रहा। सेवाओं व व्यवस्थाओं को डिजिटाइज करने के नाम पर नगर निगम ने इन प्रोजेक्ट में स्मार्ट सिटी फं ड से करोड़ों रुपए खर्च किए। अब फिसड्डी साबित हो रहीं ये ही सेवाएं निगम प्रशासन की पोल खोल रही हैं। हद तो ये कि कठौंदा वेस्ट टू एनर्जी प्लांट तक भी पर्याप्त कचरा नहीं पहुंच पा रहा है, जिसका मूल कारण शहर में ठीक ढंग से कचरा न उठना है।
ये है डिजिटाइजेशन का हाल
जे कार्ड- मेट्रो बस में चिल्लर की समस्या से निजात दिलाने 2016 में निगम ने जे कार्ड की सुविधा शुरू की। यात्री को इसके लिए लगे बैलीडेटर से टच करना था। उतरते समय भी बैलीडेटर को टच करना था। कॉर्ड से स्वत: उतनी दूरी का किराया कट जाता। ये जिम्मेदारी मुम्बई की सिम्पाल सोल्यूशन कम्पनी को सौंपी गई थी। फिलहाल कंडेक्टर के पास उपलब्ध बैलीडेटर के माध्यम से कार्ड का उपयोग हो रहा है। लगभग तीन हजार लोग इस्तेमाल कर रहे हैं। जबकि, चालीस हजार के लगभग लोग मेट्रो बस से यात्रा करते हैं। इस कार्ड से आइएसबीटी से संचालित बसों को भी जोडऩे की योजना थी। इतना ही नहीं शहर के पथ विक्रे ताओं से किराया वसूलने भी जे कार्ड का इस्तेमाल किया जाना था।
सोलर डस्टबिन- शहर में ऐसीं सोलर डस्टबिन लगाने का टेंडर किया गया, जिनमें जीपीएस लगा हो। ताकि पता चले कि कितना कचरा भर गया है। साथ ही डस्टबिन में वाईफाई और मोबाइल चाॄजंग की सुविधा भी होना थी। इसके लिए डस्टबिन के ऊ पर सोलर प्लेट होना चाहिए थी, लेकिन स्टील की सामान्य डस्टबिन में प्लास्टिक के डिब्बे रखकर खानापूर्ति कर ली गई। शहर में कचरे से भरे डस्टबिन सोलर डस्टबिन के नाम पर निगम में हुए खेल की पोल खोल रहे हैं।
वेस्ट टू एनर्जी प्लांट- कठौंदा में पौने तीन सौ करोड़ रुपए की लागत से वेस्ट टू एनर्जी प्लांट लगाया गया। प्लांट में रोजाना छह सौ टन कचरा से बिजली बनाने की क्षमता है। 11.5 मेगावॉट की क्षमता वाले इस प्लांट में रोजाना 350 से 400 टन कचरा ही पहुंच रहा है। प्लांट का पूरा उपयोग ही नहीं हो पा रहा है।
आरएफआइडी चिप-कचरा संग्रहण की व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए दो लाख घरों में आरएफआइडी (रेडियो फ्रीक्वेंसी आईडेंटीफाइड) चिप लगाई गईं। चिप लगाने की जिम्मेदारी टेक महिंद्रा कम्पनी को दी गई। जबकि, डोर टू डोर कचरा संग्रहण करने वाली एस्सेल कम्पनी के कर्मचारियों को निगम प्रशासन ने मौखिक रूप से निर्देशित किया कि वे टेक महिंद्रा कम्पनी के उपलब्ध कराए गए रीडर के माध्यम से रोजाना हर घर में रीडिंग करें। ताकि जीपीएस नेटवर्क से स्पष्ट हो सके कि कचरा उठा या नहीं। अब तक शहर को इसका कोई लाभ नहीं मिला और टेक महिंद्रा कम्पनी को 2.1 करोड़ रुपए का भुगतान कर दिए गए।
नागरिकों को बेहतर सेवाएं मुहैया कराने व उनमें गुणवत्ता देने नवचार करना आवश्यक है, लेकिन डिजिटाइजेशन के नाम पर अनावश्यक व्यय न हो ये सुनिश्चित करेंगे। डिजिटल सेवाओं को बेहतर करने ठोस कदम उठाएंगे।
-आशीष कुमार, आयुक्त, नगर निगम
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