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जबलपुर

दशहरा स्पेशल: एक मां ने दी मेडिकल साइंस को चुनौती और…बोलने लगा मूक बधिर बेटा

पल्लवी सोमैया ने मूक बधिर बच्चे को बोलना सिखाया, बनीं सैकड़ों माता पिता के लिए प्रेरणा

जबलपुरOct 27, 2020 / 11:42 am

Lalit kostha

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mother challenged madical scince

लाली कोष्टा, जबलपुर। किसी भी शादीशुदा महिला का सबसे सुख उसकी संतानें होती हैं। जब वह मां बनती है तो प्रसव पीड़ा का असहनीय दर्द भूलकर सुख का अनुभव करती है। किंतु संतान सामान्य न होकर कुछ विकृति के साथ जन्म लेती है तो दुख तकलीफ दोगुना हो जाती है। कुछ ऐसा ही किस्सा हुआ जबलपुर की पल्लवी सोमैया के साथ। मार्च 1988 में वे दूसरे बेटे की मां बनीं, खुशी बहुत हुई लेकिन धीरे धीरे पता चला कि उनका दूसरा बेटा जिसका नाम उन्होंने उमंग रखा था वो सुन बोल नहीं सकता, यानि मूक बधिर है। चूंकि पति नरेन्द्र सोमैया बिजनेसमैन थे तो हर बड़े से बड़े डॉक्टर को दिखाया लेकिन जवाब मिला ये बच्चा जिंदगी भर ऐसा ही रहेगा।

 

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नहीं मानी हार
जब समाज नाते रिश्तेदारों में ये बात फैली तो लोग सहानुभूति दिखाने लगे, जो पल्लवी सोमैया को अच्छा नहीं लगा और उन्होंने डॉक्टरों व मेडिकल साइंस को चुनौती देने की ठान ली। बच्चे को नॉर्मल बच्चों जैसे करने के लिए उन्होंने मुंबई में अली यावरजंग इंस्टीट्यूट फॉर हियरिंग हैंडिकैप में दो महीने की स्पेशल ट्रेनिंग ली। जिसके बाद बच्चे को उन्होंने घर पर ट्रेनिंग देना शुरू किया। दो साल बाद नॉर्मल बच्चों के साथ स्कूल में एडमिशन करा दिया। जहां बाकी बच्चे उमंग का मजाक उड़ाते थे। परंतु उमंग ने अपनी मां पल्लवी के हौंसले से उन सबको अपना दोस्त बना लिया। फिर मां की ट्रेनिंग के बीच उमंग इयररिंग पहनने लगा, जिससे उसे कुछ कुछ सुनाई भी देने लगा। जिसका परिणाम ये हुआ कि वह कॉलेज, इलेक्ट्रिशियन डिप्लोमा, मल्टीमीडिया कोर्स तक की पढ़ाई नॉर्मल बच्चों के साथ पास कर चुका। आज उमंग 80 प्रतिशत तक नॉर्मल बच्चों की तरह बोलने सुनने लगा है। जिसे देखकर कोई उसे मूक बधिर की श्रेणी में नहीं रख सकता है। 2015 में उमंग की शादी हो गई है।

 

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प्रेरणा बनीं तो मिले पैसों के ऑफर
पल्लवी सोमैया बताती हैं जब उमंग कॉलेज जाने लगा तो ये बात कुछ मूक बधिर बच्चों के माता पिता को पता चली। उन्होंने अपने बच्चों को ट्रेंड करने के लिए पैसे तक ऑफर किए, जिस पर मैं उनसे कह देती थी कि मां जो खुद कर सकती है वो कोई टीचर या मेंटर नहीं कर सकती।

दो दर्जन से अधिक बच्चे कर दिए नॉर्मल
पल्लवी ने मूक बधिर बच्चों के परिजनों को नि:शुल्क ट्रेनिंग और अपने अनुभव बताने लगीं। कुछ परिजन हफ्ते या 15-15 दिन में उनके पास एक दिन के लिए आते हैं या कॉल पर ही जानकारी लेते हैं और अपने बच्चों पर उनके बताए अनुसार वे एप्लाई करते हैं। पल्लवी ने बताया कि अब तक करीब 25 से ज्यादा मूक बधिर बच्चे नॉर्मल बच्चों की तरह बोलने सुनने लगे हैं, इनमें कुछ अपने पैरों पर खड़े हो चुके हैं तो कुछ अभी पढ़ाई कर रहे हैं। मैं हर उस माता पिता को सपोर्ट करती हूं जो अपने किसी विकृति से ग्रसित बच्चों के लिए परेशान रहते हैं।


ये है उद्देश्य
पल्लवी का कहना है कि वे इस सब सेवा के पीछे सिर्फ एक बात रखती हैं कि ये बच्चे समाज से उपेक्षित न हों बल्कि मुख्यधारा में जुडकऱ आगे बढ़ें। मानसिक रूप से कमजोर बच्चों को भी सक्षम बनाने का काम कर रही हूं, ताकि वे किसी पर बोझ न बनें, बल्कि स्वयं के काम कर सकें। वे अपने लिए यहीं कहती हैं…. मैं मदद के लिए तैयार हूं…

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