जिले में ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में रोजाना तीन लाख 50 हजार लीटर से ज्यादा दूध का उत्पादन होता है। शहर की इतनी जरुरत नहीं है। इसलिए दूध बाहर भेज दिया जात है। गर्मियों में लस्सी और दही के कारण खपत बढ़ती है। शादी विवाह में पनीर का उपयोग बढऩे के कारण मांग अधिक रहती है। इसे देखते हुए भी दामों में मनमर्जी से इजाफा कर दिया जाता है। ऐसा भी नहीं है कि अब पहले जैसे आहार की कमी रहती हो। किसान के पास बारह महीने सिंचाई के साधन रहते हैं। ऐसे में भैंस एवं गाय के भोजन के लिए हरी घास और पत्तेदार आहार बड़ी मात्रा में उगाया जाता है। इसी प्रकार की गेहूं की कटाई शुरू हो चुकी है। ऐसे में पर्याप्त मात्रा में भूसा भी डेयरी मालिकों के पास रहेगा।
मिलावट पर भी रोक नहीं
जैसे ही दूध के दाम बढ़ते हैं तो इसका असर डेयरी संचालकों पर तो नहीं पड़ता लेकिन जो दूध विक्रेता इनसे दूध खरीदकर लाते हैं उनकी ग्राहकी प्रभावित होती है। ऐसे में मिलावट की आशंका बढ़ जाती है। डिब्बेवाले दाम स्थिर रखने के लिए ऐसा करने लगते हैं। इससे ग्राहकों को गुणवत्तापूर्ण दूध भी नहीं मिल पाता है।
डेयरी और सहकारी संस्थाओं के रेट जुटाए
दूध के दामों में अचानक वृद्धि क्यों की गई। इसका आधार क्या है। यह अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी है या दूध व्यवसाइयों का कोई बड़ा खेल। इन तमाम बिन्दुओं पर जिला प्रशासन की टीम ने जांच शुरू कर दी है। इस टीम में सीएमएचओ, डिप्टी डायरेक्टर वेटरनरी, संयुक्त कलेक्टर और जिला आपूर्ति नियंत्रक को शामिल किया गया है। टीम ने दूध डेयरियों के अलावा सांची सहित दूसरी सहकारी संस्थाओं की बीते तीन सालों की रेट लिस्ट मांगी है। रेट का आकलन किया जा रहा है। इसकी आधर पर टीम अपनी रिपोर्ट शुक्रवार को कलेक्टर को सौंपेगी। रिपोर्ट के बाद मैदानी इलाकों में कार्रवाई के लिए टीम बनाई जाएगी। इसका मुखिया उस क्षेत्र के एसडीएम को बनाया जाएगा।
ये है स्थिति
– 01 एक लीटर दूध पर दो से तीन रुपए अतिरिक्त वसूले जा रहे
– 50 हजार लीटर से ज्यादा दूध का उत्पादन रोजाना ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में