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जबलपुर

जब अपने भी शव नहीं छू रहे थे, इन्होंने कंधा और मुखाग्नि दी

कोरोना संकट काल में जबलपुर में नि:स्वार्थ भाव से पीडि़तों की सेवा में चुपचाप जुटी रही यह टीम
 

जबलपुरDec 04, 2020 / 10:32 pm

shyam bihari

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Coronavirus started spreading from US, not from China: US CDC Report

जबलपुर। कोरोना की दस्तक। लॉकडाउन और फिर संक्रमण के कहर के बीच जबलपुर शहर में भी किसी की नौकरी छिन गई। तो किसी का काम-धंधा ठप हो गया। परिवार आर्थिक तंगी से गुजर रहा था। जिंदगी की कश्मकस के बीच झटका उस वक्त लगा जब एक के पिता गम्भीर हो गए। एक का भाई हमेशा के लिए साथ छोड़कर चला गया। संकट के कई मोर्चे पर एक साथ जूझने के बाद भी इन युवाओं के जेहन में बस पीडि़त मानवता की सेवा का जज्बा उबाल मारता रहा। कोरोना काल में जब अपने भी पराए जैसे हो गए थे ये युवा अपना दर्द छिपा दूसरे का दुख बांटने में लगे रहे। कोरोना के चलते जान गंवानों वालों के शवों को जब अपने भी छू नहीं रहे थे, इन्होंने कंधा दिया। अजनबी होकर भी कभी बेटा, कभी भाई, तो कभी पिता बनकर कोरोना संक्रमितों का अंतिम संस्कार किया। आठ महीने से ये युवा नि:स्वार्थ भाव से कोरोना मरीजों और उनके परिजनों की चुपचाप सेवा में जुटे हुए है।
ये कर्मवीर
शास्त्री नगर के पास रहने वाले 27 वर्षीय जितेन्द्र सिंह ठाकुर बस बुकिंग एजेंट थे। दिव्यांग हैं। घर में पत्नी और दो छोटे बच्चे हैं। परिवार के एकमात्र कमाने वाले सदस्य हैं। लॉकडाउन में बसों के पहिए थमे तो इनका काम भी बंद हो गया। कोरोना शव को उठाने से लेकर अंतिम संस्कार में मदद कर रहे हैं। बदनपुर निवासी 28 वर्षीय सिमरप्रीत सिंग नागी एक निजी कम्पनी में सेल्समेन थे। लॉकडाउन में नौकरी चली गई। कोरोना मरीज को अस्पताल तक एंबुलेंस से लेकर आना हो या फिर संक्रमित के शव को श्मशान लेकर जाना, वाहन चलाकर ले गए। बीच में पिता को लकवा हो गया। पिता की सेवा के साथ मदद भी जारी रखी। सूपाताल निवासी शहादत हुसैन एनएससीबी मेडिकल कॉलेज के पास अंडे की दुकान चलाते थे। अतिक्रमण विरोधी लहर में घर टूट गया। लॉकडाउन में दुकान बंद हो गई। घर में मां, पत्नी और एक बेटा है। सभी की जिम्मेदारी थी। फिर भी कोरोना मरीजों की सेवा जज्बा बना रहा। जरूरतमंदों को खाना बांटने से लेकर संक्रमित के शव के अंतिम संस्कार में लगे रहे। सिविल लाइंस निवासी 29 वर्षीय अमित बागड़े पेशे से एम्बुलेंस चालक हैं। प्राइवेट एम्बुलेंस चलाते हैं। आवश्यकता पडऩे पर कोरोना मरीज या परिजन की मदद को तत्पर रहते हैं। कोरोना काल में भाई की मौत और आर्थिक स्थिति खराब होने के बाद भी जब कोरोना संक्रमित की अंतिम यात्रा पर शव वाहन चालक की जरुरत हुई तो वाहन चलाया।
कोरोना संकट काल में इन युवाओं ने संक्रमित की सेवा को ही धर्म माना। मोक्ष संस्था के आशीष ठाकुर के साथ मिलकर न केवल कोरोना संक्रमित का सुरक्षित तरीके से अंतिम संस्कार किया। बल्कि मृतक की धार्मिक परंपरा की पालना में भी सहयोग किया। जाति-धर्म के भेद से ऊपर उठकर हर वर्ग के कोरोना मरीज-परिजन को मदद पहुंचाई। छोटी-छोटी नौकरी और प्रतिदिन कमाने खाने वाले इन युवाओं की आय कम भले ही है, लेकिन कोरोना से पीडि़त लोगों की मदद में इनसे आगे कोई नहीं है। इन युवाओं की मदद से अभी तक करीब दो सौ कोरोना संक्रमित शव का अंतिम संस्कार किया गया है।

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