एक महीने तक सरचार्ज
जानकारों का कहना है कि बुकिंग पितृ पक्ष के दौरान गया से लौटना महंगा होगा। इस दौरान एकाएक बढऩे वाली यात्रियों की संख्या को देखते हुए रेलवे ने गया से यात्रा करने वालों की टिकट पर मेला सरचार्ज लगाएगा। एसी से जनरल टिकट तक यह सरचार्ज वसूला जाएगा। यह सरचार्ज 23 सितंबर से आठ अक्टूबर तक वसूला जाएगा। इसके बाद सामान्य टिकट का किराया ही यात्रियों को देना पड़ेगा। रेलवे से मिली जानकारी के अनुसार गया से जारी होने वाले जनरल टिकट पर पांच रुपये मेला सरचार्ज लिया जाएगा। । आरक्षित श्रेणियों के लिए यह शुल्क 10 से 40 रुपये तक महंगा हो जाएगा।
लोगों में असंतोष
गयाजी में वर्ष में एक बार लगने वाले 15 दिवसीय श्राद्ध मेले से ठीक पहले रेलवे द्वारा सरचार्ज लगाए जाने को लोगों ने अनुचित बताया है। समाजसेवी आरएस सिंह, रामनरेश दुबे, शीतल गुप्ता आदि का कहना है कि पहले गयाजी जाने वालों को लोग यथा संभव दान देकर उनकी विदाई करते थे। वापसी पर उनका अभिनंदन और स्वागत किया जाता है। ये कैसी सरकार है कि इसमें श्राद्ध पर्व पर मेले का सरचार्ज वसूली जा रहा है। हालांकि रेलवे तर्क है इस राशि को मेले की व्यवस्था में खर्च किया जाएगा।
ये है गयाजी की मान्यता
– पितरों के लिए खास आश्विन माह के कृष्ण पक्ष या पितृपक्ष में मोक्षधाम गयाजी आकर पिंडदान एवं तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और माता-पिता समेत सात पीढिय़ों का उद्धार होता है।
– पवित्र फल्गु नदी के तट पर बसे प्राचीन गया शहर की देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी पितृपक्ष और पिंडदान को लेकर अलग पहचान है।
– पितृपक्ष के साथ-साथ तकरीबन पूरे वर्ष लोग अपने पूर्वजों के लिए मोक्ष की कामना लेकर यहां पहुंचते हैं और फल्गु नदी के तट पर पिंडदान और तर्पण आदि करते हैं।
– गया शहर के पूर्वी छोर पर पवित्र फल्गु नदी बहती है। माता सीता के श्राप के कारण यह नदी अन्य नदियों के तरह नहीं बह कर भूमि के अंदर बहती है इसलिए इसे ‘अंत सलीला’ भी कहते हैं।
– गयावाल पंडा समाज के शिव कुमार पांडे बताते हैं कि वायु पुराण में फल्गु नदी की महत्ता का वर्णन करते हुए ‘फल्गु तीरथ’ कहा गया है तथा गंगा नदी से भी ज्यादा पवित्र माना गया है।
– लोक मान्यता है कि फल्गु नदी के तट पर पिंडदान एवं तर्पण करने से पितरों को सबसे उत्तम गति के साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है एवं माता-पिता समेत कुल की सात पीढिय़ों का उद्धार होता है। साथ ही पिंडदानकर्ता स्वयं भी परमगति को प्राप्त करते हैं।
– पुराणों के अनसार ऐसी मान्यता है कि फल्गु नदी के जल में पांव पडऩे से उडऩे वाले पानी के छींटे मात्र से भी पूर्वजों की आत्मा की मुक्ति हो जाती है। पैर के स्पर्श से उडऩे वाले पानी के छींटों को भी पवित्र मानकर पूर्वजों की आत्मा इस इनको ग्रहण करके तृप्त हो जाती है।
– मान्यता है कि पितरों की आत्मा को मोक्ष नहीं मिला है तो उनकी आत्मा भटकती रहती है। इनकी तृप्ति के लिए गयाजी जाकर पितरों का पिंडदान अवश्य करना चाहिए।
– मान्यता है कि सर्वप्रथम आदिकाल में सृष्टिकर्ता ब्रह्मा और भगवान श्रीराम ने फल्गु नदी में पिंडदान किया था। महाभारत के वन पर्व में भीष्म पितामह और पांडवों द्वारा भी पिंडदान किए जाने का उल्लेख है।