जबलपुर। गुलौआताल के पुनरुद्धार और सौंदर्यीकरण में लगभग तीन करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए पर तालाब का पानी बदबू मार रहा है। तालाब के पानी में प्रदूषण इतना ज्यादा है कि हाथ डालने से भी बीमारी हो जाए। देवताल में भी प्रदूषण बढऩे के कारण पानी का रंग बदल गया है। संग्राम सागर, इमरती तालाब का भी ऐसा ही हाल है। सीवर का गंदा पानी मिलने के कारण तालाब गटर में तब्दील हो गए हैं। इन तालाबों के सैंपल लेकर लेबोरेटरी में की गई जांच से खुलासा हुआ है की तालाबों में बैक्टीरिया की संख्या इतनी ज्यादा है की पानी छूने योग्य भी नहीं है। तालाबों के पानी में नाइट्रेट, हार्डनेस, मैग्नीशियम, सोडियम बीओडी की मात्रा मानकों के मुकाबले बहुत ज्यादा बढ़ गई है, जो नुकसानदायक है।
तालाबों के पुनरुद्धार की दरकार
तालाबों में जल शुद्धिकरण के लिए उनके पुनरुद्धार की दरकार है। तालाबों में सीवरेज का पानी मिलने से रोके बिना ऐसा संभव नहीं है। तालाबों की डीसिल्टिंग करने के साथ ही बीओडी का स्तर बेहतर करने के लिए फव्वारे स्थापित करने की आवश्यकता है।
तालाबों में प्रदूषण की स्थिति
संग्राम सागर
-17 हजार बैक्टीरिया
-13.5 नाइट्रेट
-399 हार्डनेस,
-585 कैल्शियम,
-75 मैग्नीशियम,
-121सोडियम,
-3.5 ऑक्सीजन,
-47.1 बीओडी,
इमरती तालाब
-18 हजार बैक्टीरिया,
-20.1 नाइट्रेट,
-651 हार्डनेस,
-601 कैल्शियम,
-86 मैग्नीशियम,
-130 सोडियम,
-1.2 ऑक्सीजन,
-63.1 बीओडी,
गुलौआताल
-79 हजार बैक्टीरिया,
-18.7 नाइट्रेट,
-542 हार्डनेस,
-550 कैल्शियम,
-80 मैग्नीशियम,
-128 सोडियम,
-2.4 ऑक्सीजन,
-49.3 बीओडी,
जल शुद्धिकरण के लिए ये करने होंगे उपाय
-डीसिल्टीकरण
-सीपेज व गंदा पानी आने से रोकना
-एलगी को पूर्णत: हटाना
-तालाब में न्यूनतम 12 घंटे फव्वारे चलाना
तालाबों से सैंम्पल लेकर पानी की जांच की गई तो तय मानकों के मुकाबले प्रदूषण का स्तर बहुत ज्यादा पाया गया है। पानी उपयोग योग्य नहीं हैं। प्रदूषण का स्तर इतना ज्यादा है कि तालाबों के पानी को स्पर्श करने भी त्वचा संबंधी बीमारी हो सकती हैं।
विनोद दुबे, भूजलविद्
तालाबों में सालों से जमा शिल्ट व गंदगी को निकालने की आवश्यकता है। इसके बाद फव्वारे लगाकर बीओडी का स्तर दुरुस्त किया जा सकता है। इतना ही नहीं तालाबों का पानी उपयोगी बनाने के लिए पहले उनमें नाले व सीवेज का पानी मिलने से रोकना होगा। जहां आवश्यकता है दूषित पानी मिलने से रोकने के लिए बेहतर ढंग से पिचिंग करना होगी।
एसके खरे, वैज्ञानिक, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड