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जबलपुर

इस बीमारी में खून के थक्के नहीं जम पाते

हीमोफीलिया डे आज : जागरुकता से नहीं पड़ेगी जोखिम में जान

जबलपुरMay 05, 2019 / 01:55 am

reetesh pyasi

hospital

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जबलपुर । आमतौर पर चोट लगने पर थोड़ा खून बहने के बाद उसके थक्के जमकर खून बहना बंद हो जाता है। लेकिन हीमोफीलिया पीडि़त होने पर ऐसा नहीं होता। खून का बहना बंद नहीं होने पर जान को खतरा उत्पन्न हो जाता है। मेडिकल कॉलेज के चिकित्सकों के अनुसार हीमोफीलिया पीडि़तों की संख्या बेहद कम होती हैं। वर्ष में औसतन पांच से सात मरीज ही अस्पताल में भर्ती होते हैं। जिन लोगों को हीमोफीलिया होता है उनमें थक्के बनाने वाले घटक की मात्रा बहुत कम हो जाती है। इससे उनका ख़ून ज़्यादा समय तक बहता रहता है। ऐसे में शरीर में रक्त की मात्रा कम होने पर उन्हें गंभीर खतरा होता है।

आनुवांशिक कारणों से होती है बीमारी
मेडिकल अस्पताल में पीडियाट्रिक डॉ. पवन घनघोरिया के अनुसार हीमोफीलिया बीमारी अधिकतर आनुवांशिक कारणों से होती है। माता-पिता में से किसी एक को भी संक्रमण होने पर बच्चे में यह बीमारी होने का अंदेशा होता है। इसके अतिरिक्त बहुत कम ऐसा होता है कि अन्य किसी संक्रमण से यह बीमारी होती हो।

जागरुकता की कमी
चिकित्सकों का मानना है कि यह बीमारी जागरुकता में कमी के कारण होती है। हीमोफीलिया के तीन स्तर होते हैं। प्रारंभिक स्थिति में शरीर में थक्के के बनाने वाले घटक 5 से 50 प्रतिशत तक होते हैं। मध्यम स्थिति में ये घटक 1 से 5 प्रतिशत होते हैं। और जब स्थिति बिगड़ जाती है और गंभीर हो जाती तो है स्तर महज 1 प्रतिशत से भी कम रह जाता है। अनुवांशिक होने के कारण जन्म के बाद ही बच्चे में बीमारी का पता चल जाता है। बीमारी की दूसरी और तीसरी स्टेज होने पर बचपन में ही खून बहाव के लक्षण के साथ बीमारी समझ आ जाती है।

इसे नजरअंदाज न करें
चिकित्सकों के अनुसार बीमारी का स्तर गंभीर होने पर बच्चे को मामूली झटका लगने पर भी खून निकलने लगता है। लेकिन यदि बीमारी प्रारंभिक स्तर में है तो आसानी से समझ नहीं आती। कई बार बच्चे के दांत निकलते वक्त खून बहना बंद नहीं होता है। घुटने में चोट लगने पर खून अंदर ही जम जाता है। ये हीमोफीलिया के लक्षण हो सकते है।

ये है स्थिति
6 मरीज हर साल औसतन एनएसीबीएमसी में आते है
8 फैक्टर की कमी हीमोफीलिया की श्रेणी ए में होता है
9 फैक्टर की कमी हीमोफीलिया की श्रेणी बी में होता है।
10 हजार में एक मरीज हीमोफीलिया श्रेणी ए का होता है।
40 हजार में एक मरीज हीमोफीलिया श्रेणी बी का होता है।
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