साइट से हटा लिया आदेश
उच्च शिक्षा विभाग द्वारा सातवें वेतनमान का लाभ देने की घोषणा का आदेश जारी किया गया। विश्वविद्यालयीन प्राध्यापकों की आपत्ति आने के बाद उच्च शिक्षा विभाग ने साइट से आदेश को हटा लिया गया। न ही इस संबंध में अपना अभीमत दिया गया जिससे प्राध्यापकों में भी असमंजस की स्थ्ािित पैदा हो गई है।
इसलिए है विरोध
प्राध्यापकों का कहना है कि विभाग ने विश्वविद्यालयों से कहा है कि विश्वविद्यालय अपने स्त्रोतों से इसे लागू कर सकता है। लेकिन विश्वविद्यालय अपनी आर्थिक स्थिति का हवाला देकर इससे लागू करने से कतराएंगे। जिससे विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों को लाभ नहीं मिल सकेगी। जबकि दूसरी और कॉलेज के प्राध्यापकों को केंद्र सरकार द्वारा यूजीसी फंड से यह राशि की व्यवस्था की जाएगी। जो 5 सालों तक मिलेगा। इसके बाद राज्यसरकार निर्णय लेगी।
215 करोड़ का हल साल खर्च
प्रदेश से करीब 900 प्राध्यापकों को सातवें वेतनमान लागू होने से हर साल करीब 215 करोड़ रुपए सरकार को अतिरिक्त देने होंगे। हर प्राध्यापक को 15 से 20 हजार का लाभ मिलेगा। प्रदेश के विश्वविद्यालयों में करीब 1000 प्राध्यापकों के लिए विश्वविद्यालयों को ही इस रकम की व्यवस्था करनी होगी। इसकी व्यवस्था विश्वविद्यालयों को अपने संसाधन से करनी होगी। जबलपुर संभाग में 600 प्राध्यापक शामिल हैं। वहीं रादुविवि में ही करीब आधा सैकड़ा प्राध्यापकों को बढ़ा वेतनमान के लिए करीब 2 करोड़ रुपए सालाना पैसों की व्यवस्था करनी होगी।
-जिस तरह कॉलेज प्राध्यापकों को सातवें वेतनमा की घोषणा की गई है उसी तरह अन्य विश्वविद्यालयों के प्राध्यापकों को भी इस लाभ से जोड़ा जाए। हमने शासन से अनुरोध किया है।
-डॉ.अरुण शुक्ल, जिलाध्यक्ष शा प्राध्यापक संघ
-यह विडंबना है कि दूसरे विभागों के कर्मचारियों को सांतवे वेतनमान का लाभ तुरंत मिल जाता है लेकिन जब प्राध्यापकों की बात आती है तो इसमें कोई न कोई पेच खड़ा हो जाता है।
-डॉ.टीआर नायडू, प्राध्यापक
-उच्च शिक्षा विभाग ने विश्वविद्यालयों को अपने स्तर संशोधन के द्वारा निर्णय लेने की बात कही है। आपत्ति के बाद आदेश को हटा लिया गया है। फिलहाल यह मामला न्यायालय में विचाराधीन है।
-प्रो.राकेश बाजपेयी, कुलसचिव रादुविवि