जबलपुर। आपने अभी तक फिल्मों देखा होगा कि किसी परिवार की एक पीढ़ी की गलतियों की सजा उसकी दूसरी पीढ़ी काटती है। और उन्हें बचाने के लिए परिवार की कोई महिला ऊंची पढ़ाई करके अफसर और अधिवक्ता बनकर अपने परिवार की रक्षा करती है। कुछ इसी प्रकार की कहानी है पाठक परिवार की। जहां, प्रदेश सरकार में अफसर रहे एक पिता के भ्रष्टाचार के कारनामों की सजा उनके बेटो को मिली है। 22 साल पुराने आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में लोकायुक्त के विशेष न्यायाधीश
अक्षय कुमार द्विवेदी ने मृतक आरोपी अफसर (ट्रायल के दौरान मौत) के दोनों पुत्रों को 4-4 साल के कारावास और 30-30 लाख रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई है। इस मामले में अपने पति को बचाने के लिए परिवार की बहू वकालत की पढ़ाई करती है। अपनी पति को बचाने के लिए हाईकोर्ट में कई दलीलें पेश करती है। लेकिन जब हाईकोर्ट निर्णय करती है तो न्याय जीतता है और वह हार जाती है।
क्या है मामलालोकायुक्त को पीडब्ल्यूडी में पदस्थ रहे गया प्रसाद पाठक के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति की शिकायतें मिलीं। लोकायुक्त की टीम ने 22 नवम्बर 1995 को सागर में पदस्थ होने के दौरान पाठक के सरकारी आवाम्पर छापा मारा। इसी दौरान लोकायुक्त की एक अन्य टीम ने जबलपुर स्थित उनके पुत्रों प्रशांत पाठक, पंकज पाठक के घर पर दबिश दी। कार्यवाही में आय से जुड़े दस्तावेज और नकद तकरीबन 22 लाख रुपए बरामद किए गए। तकरीबन पांच साल की विवेचना के बाद वर्ष 2000 में प्रकरण ट्रायल में आया।
दुष्प्रेरण माने गए बेटे भ्रष्टाचार का यह मामला करीब 22 वर्ष पुराना है। सूत्रों के अनुसार प्रकरण में दोनों बेटों के नाम पर जमीन-जायदाद, बैंक एकाउण्ट में भारी-भरकम रकम को आधार बनाया गया और फिर जांच की गई। जांच में उजागर हुआ कि आय न होने के बावजूद परिवार के सदस्यों की आय में लगातार कैसे इजाफा होता रहा। मामले में आरोपी के दोनों बेटों की आय का साधन नहीं था, लेकिन उनकी नाम पर दर्ज चल-अचल सम्पत्ति लगातार बढ़ती रही। इसके चलते हाईकोर्ट ने आय से अधिक संपत्ति के मामले में पिता के भ्रष्टाचार के लिए उसके दोनों बेटों को दुष्प्रेरण माना गया।
सुनवाई के दौरान मुख्य आरोपी की मौत भ्रष्टाचार के इस मामले की सुनवाई के दौरान ही 16 अक्टूबर 2011 को मुख्य आरोपी गया प्रसाद की मौत हो चुकी है। वहीं, मामले में फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि छापामारी के दौरान बरामद की गई तकरीबन 22 लाख की जो रकम आयकर विभाग में जमा कराई गई, उसे राजसात कर लिया जाए।
पत्नी झोंक दी पूरी ताकत किसी फिल्मी स्टोरी की तरह ही कोर्ट की ओर से दोषी ठहराए गए अपने पति प्रशांत पाठक को बचाने के लिए उनकी पत्नी रश्मि पाठक ने पूरी ताक झोंक दी। उन्होंने कठिन समय में परिवार की जिम्मेदारी के साथ ही कानून की पढ़ाई की। कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने पति का केस खुद लड़ा। वर्षों तक चले मामले में रश्मि ने कभी हौसला नहीं हारा। संकट की घड़ी में परिवार को बचाने के लिए उन्होनें पूरी ताकत झोंक दी।
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