यह मामला करीब 8 साल पुराना है, जब पत्नी बीमार थी तो पति ने इलाज के लिए कर्ज लिया। बाद में उसे चुकाने के लिए पैतृक जमीन बेच दी, तो पत्नी ने बवाल खड़ा कर दिया। ये विवाद इतना बढ़ गया कि दोनों आठ साल तक एक-दूसरे से दूर रहे। हाईकोर्ट के जस्टिस सुजय पॉल और जस्टिस बीके श्रीवास्तव की डिवीजन बेंच के एक आदेश ने दोनों की जिंदगी की खुशियां वापस ला दी।
दरअसल, सतना जिले के रामनगर थानांतर्गत देवराज नगर निवासी उमेश सोनी ने कुटुम्ब न्यायालय सतना के फैसले के खिलाफ यह प्रथम अपील की थी। इसमें कहा गया कि अपीलकर्ता का विवाह 1994 में सुनीता से हुआ। कुछ अरसे बाद से ही वह पति से झगड़ने लगी।
पत्नी की तबीयत खराब होने पर इलाज के लिए अपीलकर्ता को कर्ज लेना पड़ा। उसे चुकाने के लिए उसने अपनी जमीन बेच दी। जबकि, सुनीता और उसके परिजन चाहते थे कि अपीलकर्ता उस रकम को सुनीता के नाम जमा कर दे। इसी बात को लेकर उपजे विवाद के बाद सुनीता ने अपीलकर्ता का घर 16 अप्रैल 2011 को छोड़ दिया। दोनों की पुत्री है, जो अब 19 वर्ष की हो चुकी है और मां के साथ रहती है।
कुटुम्ब न्यायालय सतना ने अपीलकर्ता की तलाक के लिए दायर अर्जी निरस्त कर दी। 13 जुलाई 2015 को उसकी पत्नी द्वारा वैवाहित संबंधों की पुनर्स्थापना के लिए दायर अर्जी मंजूर कर अपीलकर्ता को निर्देश दिए कि वह पत्नी को अपने साथ रखे। इन दोनों आदेशों को अपील में चुनौती दी गई।
गत 24 जनवरी को कोर्ट ने दोनों पक्षों को कहा कि वे आगामी आदेश तक एक साथ रहें। इस पर अमल करते हुए पति-पत्नी अपनी बेटी को साथ लेकर साथ-साथ रहे। इसके बाद दोनों के विचार बदल गए। दोनों ने भविष्य में साथ रहने का निर्णय ले लिया। संयुक्त रूप से कोर्ट को दोनों ने अपने फैसले से अवगत कराया। इसके बाद कोर्ट ने दोनों की मंशा का सम्मान करते हुए उनके शांतिपूर्वक जीवन बिताने की आशा जताई। अधिवक्ता संजय वर्मा और टीके मोढ़ ने इस मामले में कोर्ट का विशेष सहयोग दिया।