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जबलपुर

जब संगमरमरी सौंदर्य से अभिभूत हो उठे नीरज, इस शहर में बसी हैं उनकी खास यादें

संस्कारधानी से कवि गोपालदास नीरज का था खास नाता

जबलपुरJul 20, 2018 / 12:17 am

Premshankar Tiwari

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संस्कारधानी से कवि गोपालदास नीरज का था खास नाता

जबलपुर। प्रसिद्ध कवि गोपालदास व्यास नीरज का जबलपुर से गहरा आत्मिक नाता था। उनके भाई स्थानीय डीएन जैन कॉलेज ूमें प्रोफेसर थे। लिहाजा वे यहां आते-जाते रहते थे। नीरज यहां के प्राकृतिक सौंदर्य, विशेषत: भेड़ाघाट स्थित धुआंधार जलप्रपात को देखकर अभिभूत थे। कवि डॉ राजकुमार तिवारी सुमित्र ने यह जानकारी दी। नीरज के करीबी रहे डॉ तिवारी नेबताया कि उनके तीन बार जबलपुर प्रवास की उन्हें याद है। उन्होंने कहा कि नीरज के रोम-रोम में कविता बसती थी।

दत्त भजन मंदिर में हुआ था सम्मेलन
डॉ तिवारी ने स्मृतियों के झरोखे खोलते हुए बताया कि आखिरी बार 1990 के दशक में गोलबाजार स्थित दत्त भजन मंदिर में हुए अखिल भारतीय कवि सम्मेलन मे नीरज का जबलपुर आगमन हुआ था। इसके पूर्व वे फुहारा में हुए महावीर जयंती के कार्यक्रम के अलावा एक बार और कवि सम्मेलन में शिरकत करने जबलपुर आ चुके थे।

धुआंधार देखकर करते थे लेखन
सुमित्र ने बताया कि नीरज जबलपुर के प्राकृतिक सौंदर्य को अनुपम कहा करते थे। उन्होंने बताया कि धुआंधार की चर्चा चलते ही नीरज भावुक हो जाते थे। उनका कवि मन मचलने लगता था। कवि सम्मेलनों में शामिल होने के दौरान वे भेड़ाघाट जरूर जाते थे। वहां से लौटकर अक्सर वे लेखन करने बैठ जाते।

दिलों में जिंदा रहेंगे उनके गीत
उल्लेखनीय है कि मशहूर कवि गोपालदास नीरज नहीं रहे। कई दिनों की लंबी बीमारी के बाद दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में उन्होंने अंतिम सांस ली। वह फेफड़ों में संक्रमण से जूझ रहे थे। नीरज ने 93 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया। लेकिन उनकी रचनाओं के संसार का फलक इतना बड़ा है कि अपने चाहने वालों के दिलों में वे आजीवन जिंदा रहेंगे।

 

मेरा नाम लिया जाएगा

आंसू जब सम्मानित होंगे, मुझको याद किया जाएगा
जहां प्रेम का चर्चा होगा, मेरा नाम लिया जाएगा

मान-पत्र मैं नहीं लिख सका, राजभवन के सम्मानों का
मैं तो आशिक़ रहा जन्म से, सुंदरता के दीवानों का
लेकिन था मालूम नहीं ये, केवल इस ग़लती के कारण
सारी उम्र भटकने वाला, मुझको शाप दिया जाएगा

खिलने को तैयार नहीं थी, तुलसी भी जिनके आंगन में
मैंने भर-भर दिए सितारे, उनके मटमैले दामन में
पीड़ा के संग रास रचाया, आँख भरी तो झूम के गाया
जैसे मैं जी लिया किसी से, क्या इस तरह जिया जाएगा

काजल और कटाक्षों पर तो, रीझ रही थी दुनिया सारी
मैंने किंतु बरसने वाली, आंखों की आरती उतारी
रंग उड़ गए सब सतरंगी, तार-तार हर सांस हो गई
फटा हुआ यह कुर्ता अब तो, ज़्यादा नहीं सिया जाएगा

जब भी कोई सपना टूटा, मेरी आंख वहां बरसी है
तड़पा हूं मैं जब भी कोई, मछली पानी को तरसी है
गीत दर्द का पहला बेटा, दुख है उसका खेल-खिलौना
कविता तब मीरा होगी जब, हंसकर ज़हर पिया जाएगा

– गोपालदास “नीरज”

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