ज्योतिषियों के मुताबिक सूर्य वृश्चिक राशि से निकल कर धनु राशि में प्रवेश कर गए हैं। सूर्य का धनु राशि में प्रवेश मंगलवार की रात प्रथम प्रहर में हुआ। ऐसे में सूर्य के इस राशि परिवर्तन का असर कमोबेश सभी राशियों के जातकों पर पड़ेगा। लेकिन चार राशियों पर सकारात्मक प्रभाव होगा। वहीं दो राशियों के जातकों के लिए यह एक महीने का वक्त काफी कठिन होगा।
भृगु संहिता के जानकारों का मानना है कि जिन चार राशियों पर सूर्य के राशि परिवर्तन का सकारात्मक प्रभाव होगा वो हैं कर्क, तुला, कुंभ और मीन। कर्क राशि– इस राशि के जातकों में धर्म-आध्यात्म के प्रति आस्था बढ़ेगी। दांपत्य जीवन सुखमय होगा। प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता मिलेगी। साथ ही व्यक्तिगत आकांक्षाओं की पूर्ति होगी।
तुला राशि– इस राशि के जातकों के आय के स्त्रोत में वृद्धि होगी। बौद्धिक क्षमता का विकास होगा। जीवन में तनाव कम होगा। व्यापारिक वातावरण अनुकूल होगा। कुंभ राशि– इस राशि के जातकों को आरोग्य सुख की प्राप्ति होगी। जीवन साथी के सहयोग व स्पष्टवादिता से सामाजिक जीवन में आशातीत सफलता मिलेगी।
मीन राशि– इस राशि के जातकों के लंबे समय से रुके कार्य बन जाएंगे। धनागमन के अवसर बढ़ेंगे। आत्मीय लोगों से अपेक्षित सहयोग मिलेगा। इन चारों राशि के जातक यदि ललित कला से जुड़े हैं तो उनके लिए उनके लिए अत्यंत विशिष्ट अवसर होगा ये खरमास। संगीत, चित्रकारी से जुड़े लोगों की उन्नति के मार्ग प्रशस्त होंगे।
लेकिन धनु और वृश्चिक राशि के जातकों के लिए यह खरमास कठिन होने वाला है। खरमास से जुड़ी पौराणिक कथा मार्कंडेय पुराण में खर मास के संदर्भ में एक कथा का उल्लेख मिलता है, जिसके अनुसार, एक बार सूर्य देवता अपने सात घोड़ों के रथ पर सवार होकर ब्रह्मांड की परिक्रमा करने के लिए निकल पड़े। लेकिन इस दौरान उन्हें कहीं पर भी रुकने की इजाजत नहीं थी। इस दौरान यदि वह कहीं रुक जाते, तो पूरा जन-जीवन ठहर जाता। लेकिन इन्हीं बंदिशों के बीच उन्होंने परिक्रमा शुरू की। पर लगातार चलते रहने के कारण उनके रथ में जुते सातों घोड़े थक गए। घोड़ों को प्यास भी लगने लगी।
घोड़ों की दयनीय दशा को देखकर सूर्य देव को उनकी चिंता हो आई। ऐसे में घोड़ों को आराम देने के लिए वह एक तालाब के किनारे चले गए, ताकि रथ में बंधे घोड़ों को पानी पीने को मिल सके और थोड़ा आराम भी। लेकिन तभी उन्हें यह आभास हुआ कि अगर रथ रुका, तो अनर्थ हो जाएगा, क्योंकि रथ के रुकते ही सारा जन-जीवन भी ठहर जाता। उस तालाब के किनारे दो खर यानी गर्दभ खड़े मिले, जैसे ही सूर्य देव की नजर उन दो खरों पर पड़ी, उन्होंने अपने घोड़ों को विश्राम देने के उद्देश्य से वहीं तालाब किनारे छोड़ दिया और घोड़ों की जगह पर खर यानी गर्दभों को अपने रथ में जोड़ दिया, ताकि रथ चलता रहे। लेकिन इसके चलते रथ की गति काफी धीमी हो गई। फिर भी जैसे-तैसे किसी तरह एक मास का चक्र पूरा हुआ।
उधर सूर्य देव के घोड़े भी विश्राम के बाद ऊर्जावान हो चुके थे और पुन: रथ में लग गए। इस तरह हर साल यह क्रम चलता रहता है और हर सौर वर्ष में एक सौर मास ‘खर मास’ कहलाता है।
वैसे खर मास तीर्थ स्थल की यात्रा करने के लिए सबसे उत्तम मास माना गया है। इस महीने में भागवत् गीता, श्रीराम पूजा, कथा वाचन, विष्णु और शिव पूजन शुभ माने जाते हैं। विशेष तौर पर सूर्य की उपासना।