भारतीय जैन संघटना के सदस्य निर्मल जैन के अनुसार वर्धमान महावीर, जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान आदिनाथ की परंपरा में 24वें तीर्थंकर हुए थे। ३० वर्ष की उम्र में इन्होंने घर-बार छोड़ दिया और कठोर तपस्या द्वारा कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया। महावीर ने पाश्र्वनाथ के आरंभ किए तत्वज्ञान को परिभाषित कर जैन दर्शन को स्थायी आधार दिया। महावीर स्वामी ने श्रद्धा एवं विश्वास द्वारा जैन धर्म की पुन: प्रतिष्ठा स्थापित की तथा आधुनिक काल में जैन धर्म की व्यापकता और उसके दर्शन का श्रेय महावीर स्वामी को जाता है। महावीर स्वामी का जन्म वैशाली राज्य के एक क्षत्रिय परिवार में राजकुमार के रूप में चैत्र शुक्ल पक्ष त्रयोदशी को बसोकुंड में हुआ था। इनके बचपन का नाम वर्धमान था। वह लिच्छवी कुल के राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के पुत्र थे।
महावीर जयंती पर्व की महत्ता– महावीर द्वारा तप से जीवन पर विजय प्राप्त करने का पर्व महावीर जयंती के रूप में मनाया जाता है। श्रद्धालु मंदिरों में भगवान महावीर की मूर्ति को विशेष स्नान कराते हैं, जो कि अभिषेक कहलाता है। तदुपरांत उनकी मूर्ति को सिंहासन या रथ पर बिठाकर जुलूस निकालते हैं, जिसमें बड़ी संख्या में जैन धर्मावलंबी शामिल होते हैं। इस सुअवसर पर जैन श्रद्धालु भगवान को फल, चावल, जल, सुगंधित द्रव्य आदि वस्तुएं अर्पित करते हैं। श्रद्धालु प्रात:काल प्रभातफेरी निकालते हैं। इस दौरान भव्य जुलूस के साथ पालकी यात्रा का आयोजन किया जाता है। इसके पश्चात महावीर का अभिषेक किया जाता है तथा शिखरों पर ध्वजा चढ़ाई जाती है। जैन समाज द्वारा दिनभर अनेक धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।