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जबलपुर

बड़ी खबर: कई नेताओं ने एक साथ दिया BJP से इस्तीफा, इस वायरल वीडियो से मचा हड़कंप

कई नेताओं ने एक साथ भाजपा छोड़ी

जबलपुरSep 07, 2018 / 08:45 pm

Premshankar Tiwari

many leaders resign from BJP

कई नेताओं ने एक साथ भाजपा छोड़ी

जबलपुर। एससीएसटी एक्ट को लेकर सवर्ण समाज का आक्रोश थम नहीं रहा है। इसको लेकर गुरुवार को जहां महाबंद आयोजित हुआ, वहीं कटनी में जनपद अध्यक्ष कन्हैया तिवारी ने भाजपा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देने की अधिकृत घोषणा कर दी। तिवारी ही नहीं यहां ग्रामीण क्षेत्र के करीब छह नेताओं ने भाजपा की सदस्यता छोड़ दी, इनमें कई सरपंच और पंच भी हैं। बताया जाता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में इन नेताओं का अच्छा खासा प्रभाव है। इनके इस्तीफे से पार्टी को बड़ा झटका लग सकता है। एससीएसटी एक्ट में संशोधन के विरोध पर एक साथ कई इस्तीफों ने भाजपा संगठन को चिंता में डाल दिया है।

कहा, यह काला कानून
जनपद अध्यक्ष कन्हैया तिवारी ने इस बात को स्वीकार भी किया है कि उन्होंने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता छोड़ दी है। उनके साथ कई ऐसे पंच और सरपंच भी शामिल हैं, जिनकी भाजपा पर बड़ी आस्था थी और इनका भी ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छा प्रभाव है। भाजपा से सदस्यता त्यागने संबंधी स्वीकारोक्ति का कन्हैया का वीडियो भी खूब वायरल हो रहा है। उनका कहना है कि किसी भी निरपराध या कमजोर व्यक्ति को सताने वाले को निश्चित तौर पर सजा मिलनी चाहिए, लेकिन सच्चाई की जांच के बिना ही किसी को जेल में डाल देना। उसकी प्रतिष्ठा को धूल में मिला देना, कहां का न्याय है। यह तो काला कानून है। सवर्ण समाज के हितों पर कुठाराघात है। भाजपा ने इसके संशोधन पर मुहर लगाकर प्रबुद्ध वर्ग की अनदेखी की है। इस कानून को वापस लिया जाना चाहिए।

क्या है एससीएसटी एक्ट
अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों पर होने वाले अत्याचार व भेदभाव को रोकने के मकसद से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम, 1989 में बनाया गया था। यह एक्ट एससी/एसटी समुदाय के लोगों को अत्याचारों से बचाने के लिए लाया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट से जुड़ा एक फैसला इसी साल मार्च में दिया था, जिसके बाद एक्ट में बहुत से बदलाव आ गये। इसके बाद सरकार ने अगस्त के महीने में इस एक्ट पर एक संशोधन बिल लाकर इसे इसके 1989 वाले रूप में ही लागू कर दिया। इसके बाद से सवर्ण समाज के लोग इसका विरोध कर रहे हैं। सवर्ण समाज का तर्क है कि अभी तक जांच में एससी/एसटी से संबंधित कई शिकायतें झूठी और दुर्भावनापूर्ण पायी गई हैं। बिना सच्चाई को जांचे महज एक शिकायत पर किसी को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया जाना अनुचित व अन्याय है।

1989 के एससी/एसटी में ये प्रावधान
– जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करने पर तुरंत मामला दर्ज होता था।
– इनके खिलाफ मामलों की जांच का अधिकार इंस्पेक्टर रैंक के पुलिस अधिकारी के पास भी था।
– केस दर्ज होने के बाद तुरंत गिरफ्तारी का प्रावधान था।
– ऐसे मामलों की सुनवाई केवल स्पेशल कोर्ट में ही होती थी। साथ ही अग्रिम जमानत भी नहीं मिलती थी. सिर्फ हाईकोर्ट से ही जमानत मिल सकती थी।
– एससी-एसटी एक्ट 1989 में पीडि़त दलितों के लिए आर्थिक मदद और सामाजिक पुनर्वास की व्यवस्था भी की गई थी। इसमें यह भी प्रावधान था कि मामले की जांच और सुनवाई के दौरान पीडि़तों और गवाहों की यात्रा और जरूरतों का खर्च सरकार की तरफ से उठाया जाए। प्रोसिक्यूशन की प्रक्रिया शुरू करने और उसकी निगरानी करने के लिए अधिकारी नियुक्त किया जाए।

सुको ने कर दिए थे ये बदलाव
वरिष्ठ अधिवक्ता केपी तिवारी के अनुसार एससीएसटी एक्ट में कई झूठे और दुर्भावनापूर्ण मामले सामने आने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 1989 के कानून में कई बदलाव किए थे। 21 मार्च, 2018 में दिए अपने फैसले में सुको ने कहा था कि एससीएसटी की शिकायत व मामलों में तुरंत गिरफ्तारी नहीं की जाएगी। शिकायत मिलने के बाद डीएसपी स्तर के पुलिस अफसर द्वारा इसकी शुरुआती जांच की जाएगी और जांच किसी भी सूरत में 7 दिन से ज्यादा समय तक नहीं होगी। डीएसपी शुरुआती जांच कर नतीजा निकालेंगे कि शिकायत के मुताबिक क्या कोई मामला बनता है या फिर किसी तरीके से झूठे आरोप लगाकर फंसाया जा रहा है? सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट के बड़े पैमाने पर गलत इस्तेमाल की बात को मानते हुए कहा था कि इस मामले में सरकारी कर्मचारी अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकते हैं। इसके विरोध में एससीएसटी वर्ग के लोगों ने 2 अपै्रल को बड़ा आंदोलन किया था और बदलाव को वापस करने की मांग की थी।

फिर यह हुआ संशोधन
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटिशन भी दायर किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में आगे की सुनवाई से पहले कोई भी स्टे देने से मना कर दिया था। इसके बाद सरकार ने इस मामले में एससीएसटी एक्ट पर संशोधन विधेयक लाने का फैसला किया। एससीएसटी एक्ट संशोधन विधेयक 2018 के जरिए मूल कानून में धारा 18 जोड़ी जा रहा है। इसके जरिए पुराने कानून को बहाल कर दिया जाएगा। इस तरीके से सुप्रीम कोर्ट द्वारा किए गए प्रावधान रद्द हो जाएंगे। मामले में केस दर्ज होते ही गिरफ्तारी का प्रावधान है। इसके अलावा आरोपी को अग्रिम जमानत भी नहीं मिल सकेगी। आरोपी को हाईकोर्ट से ही नियमित जमानत मिल सकेगी। मामले में जांच इंस्पेक्टर रैंक के पुलिस अफसर करेंगे। जातिसूचक शब्दों के इस्तेमाल संबंधी शिकायत पर तुरंत मामला दर्ज होगा। एससी/एसटी मामलों की सुनवाई सिर्फ स्पेशल कोर्ट में होगी। सरकारी कर्मचारी के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दायर करने से पहले जांच एजेंसी को अथॉरिटी से इजाजत नहीं लेनी होगी।

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