यह है मामला
अभियोजन के अनुसार शहडोल निवासी उमाबाई का विवाह रेवती बाई के पुत्र शंकर दयाल से हुआ था। विवाह के बाद से ही ससुराल में उमा को दहेज कम लाने व अधिक की मांग पर प्रताडि़त किया जाता था। मायके वालों से इसकी शिकायत करने पर वे उसे अपने साथ ले गए। लेकिन उमा के ससुर की मौत पर वे उसे फिर ससुराल छोड़ गए। जहां 20 जुलाई 1993 को उमा की लाश छत में फंदे से लटकी पाई गई। शिकायत पर जांच के बाद पुलिस ने आरोपी शंकर दयाल व उसकी मां रेवती बाई के खिलाफ भादंवि की धारा 304 बी, 302 सहित अन्य के तहत दहेज हत्या का प्रकरण दर्ज किया। 7 जुलाई 1994 को अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश शहडोल की अदालत ने फैसला सुनाते हुए आरोपियों को उम्रकैद से दंडित किया।
एक बार जमानत कैंसिल करने का हो चुका आदेश
इस मामले में दोनो आरोपियों को 21 अप्रैल 2004 में हाईकोर्ट से जमानत मिल गई। लेकिन बाद में निचली अदालत के समक्ष पेशियों में लगातार गैरहाजिर रहने के चलते 1 मार्च 2012 को हाईकोर्ट ने दोनो की जमानत निरस्त करने का आदेश दे दिया। 7 दिसंबर 2017 को यह आदेश कोर्ट ने वापस लिया।