महिला सम्बंधी अपराध तेजी से बढ़े, कई थानों में नहीं हैं महिला अधिकारी
जिले में कहने को तो 42 महिला एसआई पदस्थ हैं। छह टीआई और तीन डीएसपी हैं। लेकिन, इनमें आधे के लगभग अवकाश पर हैं। इसमें भी शहरी थानों में अधिक हैं। कई थानों में महिला अधिकारी नहीं हैं। जिले में 3300 के बल में 450 के लगभग महिला पुलिसकर्मी और अधिकारी हैं। पुलिस मुख्यालय का आदेश है कि महिला सम्बंधी अपराधों में एफआईआर से पहले किसी महिला अधिकारी की मौजूदगी में पीडि़ता का कथन आवश्यक है। इस आदेश के चलते बलात्कार और छेड़छाड़ के प्रकरणों में कई बार गम्भीर स्थिति उत्पन्न हो रही है। बलात्कार, गैंगरेप, छेड़छाड़ व एसिड अटैक जैसे महिला सम्बंधी अपराधों में महिला उपनिरीक्षक से ऊपर के अधिकारियों से ही जांच कराने का प्रावधान है।
सबसे मुश्किल ग्रामीण थाना क्षेत्रों में
जिले में ग्रामीण थानों में चार में ही महिला उपनिरीक्षक पदस्थ हैं। ऐसे में एक महिला एसआई को कई बार आसपास के थानों के प्रकरणों में जाना पड़ता है। ऐसी स्थिति में कई बार पीडि़ता को थानों में कई-कई घंटे बैठने पड़ते हैं।
विवेचना में भी पड़ रहा असर
महिला अफसरों की कमी के चलते विवेचना में भी मुश्किल आ रही है। एक-एक महिला एसआई के पास कई थानों की विवेचना लम्बित है। एक मई को डीजीपी विवेक जौहरी ने इस आशय का आदेश निकाला था।
केस 1-
21 जुलाई को तिलवारा में बलात्कार का प्रकरण सामने आया। 13 वर्षीय किशोरी के साथ हुए बलात्कार की शिकायत के लिए पुलिस लाइन से महिला एसआई को बुलाना पड़ा। इसमें दो घंटे लग गए।
केस 2-
14 जुलाई को मझौली में नौकरीशुदा विधवा ने बलात्कार का मामला दर्ज कराया। गोसलपुर में पदस्थ महिला एसआई के पहुंचने पर एफआईआर दर्ज हुई। इसमें तीन घंटे लग गए।
जिले में कुछ थानों में महिला उपनिरीक्षक नहीं हैं। ऐसे में आसपास के थानों या कोड रेड से महिला एसआई को बुलाने की छूट दी गई है। जल्द ही हर थाने में एक महिला एसआई और सम्भाग में एक महिला एसआई की पदस्थापना कर दी जाएगी।
– सिद्धार्थ बहुगुणा, एसपी