जबलपुर

शशिकपूर से भी कई कदम आगे बढ़े शहर के ये आर्टिस्ट

संस्कारधानी के कुछ आर्टिस्ट भी शशिकपूर की तरह ही थिएटर को आम जन तक पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं

जबलपुरJan 17, 2018 / 02:52 pm

deepak deewan

mtnl mumbai: Theater on-wheels of samagam rangamandal

दीपिका सोनी @ जबलपुर . रोमांटिक हीरो शशिकपूर को आमतौर पर फिल्म अभिनेता के रूप में ही याद किया जाता है जबकि हकीकत ये है कि फिल्मों की तुलना में उन्हें थिएटर से ज्यादा लगाव था। पृथ्वीराज कपूर की मौत के बाद १९७१ में उन्होंंने अपनी पत्नी जेनिफर केंडल के साथ पृथ्वी थिएटर को पुनर्स्थापित किया। देश में थिएटर को जिंदा रखने में उनका यह सबसे बड़ा योगदान था। संस्कारधानी के कुछ आर्टिस्ट भी शशिकपूर की तरह ही थिएटर को आम जन तक पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं। ये आर्टिस्ट न केवल नौटंकी’ की कला को रिवाइव कर रहे हैं बल्कि थिएटर ऑनव्हील्स के माध्यम से इस कला को जन-जन तक पहुंचाने की भी पहल कर रहे हैं ।

आम आदमी तक जाएगा थिएटर
भारत में पहले से लोक रंगमंच रामलीला, रासलीला के तौर पर काम करता आया है। फिर शेक्सपीयरिन थिएटर लेकर आए अंग्रेजों से प्रेरित होकर मुंबई के कुछ लोगों ने व्यावसायिक रूप से पारसी थिएटर की नींव रखी। पारसी थिएटर एक मंडली थी, जो गांव-गांव घूमकर नाटक करती। इनकी कहानी भारतीय होती थी और संवादों में उर्दू शायरी होती थी। यह सिलसिला १९३२-३५ तक चला। जब पहली बोलती फिल्म प्रदर्शित हुई तो पारसी थिएटर के दर्शक घट गए और सिनेमा की ओर चले गए। पारसी रंगमंच और नौटंकी सिनेमा के कारण धीरे-धीरे बंद होने लगी। माडर्न इंडियन ड्रामा आया तो लेकिन रंगमंच की चार दीवारी में सिमट कर रह गया। भविष्य में उसी घुमंतू पारसी मॉडल को वापस लाने की एक कोशिश शुरू कर रहा है शहर का समागम रंगमंडल। जो मॉडर्न इंडियन ड्रामा को आम आदमी तक लेकर जाएगा, थिएटरऑन व्हील्स के जरिए। इस कॉन्सेप्ट के साथ रंगमंडल के सदस्य अपने एक ड्रामा को लेकर मार्च से अपनी यात्रा शुरू कर रहे हैं। यह दशकों बाद किया जा रहा एक प्रयास है थिएटर को जनता के पास ले जाने का।

धार्मिक रंगमंच जारी, मॉडर्न नहीं
रंगमंडल के आशीष ने बताया कि असम, उड़ीसा, नॉर्थ ईस्ट में आज भी मोबाइल थिएटर किया जा रहा है, जो काफी सफल है। लेकिन वह धार्मिक कथाओं का मंचन करता है। जात्रा उन्हीं में से एक है। हम आधुनिक रंगमंच की कहानियां मंचित करेंगे, क्योंकि इन्हें कई लोग जानते ही नहीं हैं।

नौटंकी’ को रिवाइव करेगा थिएटर ऑनव्हील्स
अगर आपको राजकपूर की फिल्म तीसरी कसम देखी है, तो उसकी नाटक मंडली भी याद होगी। यह पारसी रंगमंच का ही एक प्रतीक थी। जिस पर फिल्म बनी। घुमंतू कलाकारों का एक दल एक बार फिर शहर-शहर, गांव-गांव जाकर उसी परम्परा को पुनर्जीवन प्रदान करने जा रहा है।
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