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जबलपुर

आमजन भी देख सकेंगे नेताजी का बैरक और सामान

जबलपुर सेंट्रल जेल में संग्रहालय का शुभारम्भ : शनिवार और रविवार को मिलेगा प्रवेश
 

जबलपुरJan 23, 2022 / 07:52 pm

reetesh pyasi

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jabalpur central Jail

जबलपुर। नेताजी सुभाषचंद्र बोस केंद्रीय कारागार स्थित उस बैरक को आमजन भी देख सकेंगे, जिसमें नेताजी सुभाषचंद्र बोस को रखा गया था। उनकी 126वीं जयंती पर एसपी सिद्धार्थ बहुगुणा और जेल अधीक्षक अखिलेश तोमर ने संग्रहालय का शुभारम्भ किया। कार्यक्रम की शुरुआत नेताजी की प्रतिमा पर माल्यार्पण से हुई। एसपी ने कहा कि नेताजी से जुड़ी चीजों का संग्रहालय बनाना शहर के लिए गौरव का विषय है। आमजन सप्ताह में दो दिन शनिवार और रविवार को संग्रहालय में प्रवेश कर सकेंगे।
दो बार जेल में रहे
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान नेताजी सुभाषचंद्र बोस दो बार इस जेल में रहे। पहली बार उन्हें 22 दिसंबर, 1931 को लाया गया था। 16 जुलाई 1932 को मुम्बई की जेल में ट्रांसफर कर दिया गया था। इसके बाद 18 फरवरी, 1933 से 22 फरवरी 1933 तक उन्हें इस जेल में रखा गया। इसके बाद मद्रास भेज दिया गया।
शयन पट्टिका समेत अन्य सामान
जेल अधीक्षक अखिलेश तोमर ने बताया कि जेल में उस बैरक को सहेजकर रखा गया है, जिसमें नेताजी को रखा गया था। उनकी शयन पट्टिका और वह रजिस्टर भी मौजूद है, जिसमें दोनों बार जेल में नेताजी की आमद दर्ज हुई थी। उनके गिरफ्तारी वारंट की मूल प्रति, हथकड़ी, बेडिय़ां, कोल्हू, चक्की, उस वक्त के जेल अधिकारियों-प्रहरियों की ड्रेस, अभिलेख और अन्य सामान सहेजकर रखा गया है।

नेताजी की जबलपुर से जुडी यादें
नेताजी सुभाष चंद्र बोस चार बार जबलपुर आए थे।
दो बार जेल यात्रा के दौरान और दो बार राजनीतिक प्रवास पर आए थे।
केन्द्रीय जेल जबलपुर में सुभाष बाबू पहली बार 22 दिसम्बर 1931 से 16 जुलाई 1932 तक तथा दूसरी बार 18 फरवरी 1933 से 22 फरवरी 1933 तक कैद रहे।
05 मार्च 1939 को वे तीसरी बार जबलपुर में कांग्रेस के त्रिपुरी अधिवेशन में आए थे। इसी अधिवेशन में उन्होंने महात्मा गांधी के प्रत्याशी को हराया था।
105 डिग्री सेल्सियस के बुखार से तपने के बावजूद वे त्रिपुरी कांग्रेस की अध्यक्षता करने पहुंचे और सभा को संबोधित किया था।
त्रिपुरी अधिवेशन की याद में ही शहर के सराफा में कमानिया गेट बना है। उनके कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाने के बाद 60 हाथियों का जुलूस निकला था।
04 जुलाई 1939 को वे आखिरी बाद राष्ट्रीय नवयुवक मंडल का उद्धाटन करने शहर आए थे। यह उनका अंतिम प्रवास था।

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