ये हैं प्रमुख रक्तदानी महेन्द्र जैन
उम्र- 51 रक्तदान- 41
उद्देश्य- 15 अगस्त 1984 को जागृति संस्था बनाई थी। संस्था का उद्देश्य कुछ नया करना था। जिसके लिए पहला रक्तदान शिविर 26 जनवरी 1985 को किया था, उसके बाद तो हमें भी याद नहीं कि कितने शिविर हो चुके हैं। एक ऐसा भी वाक्या हुआ था, जब हमें अपने परिचित के लिए रक्तदान करने मुंबई भी जाना पड़ा। हम हर तीन माह में ब्लड डोनेट करते हैं। जैन कहते हैं कि रक्तदान से कोई कमजोरी नहीं आती है। हमने कई बार तीन माह के पहले भी रक्तदान किया है। इसकी प्रेरणा हमें मंजले भाई से मिली है।
उम्र- 51 रक्तदान- 39
उद्देश्य- पीडि़त मानवता की सेवा करना हमारा उद्देश्य है। हर वषज़् शिविर भी करवाते हैं। मुझे याद है जब पहली बार गांव से एक पति-पत्नी शहर आए। पत्नी बीमार थी। हजारी कहते हैं डॉक्टर ने रक्त चढ़ाने की बात की, जिस पर पति रक्त देने तैयार नहीं हुआ बल्कि वह रक्त देने के बाद खुद मर जाने की बात समझने लगा, जिस पर हम उसे गांव से लेकर आए और मैंने रक्त दिया। तब से वह भी रक्तदान में पीछे नहीं है। इस सेवाभाव से मेरा इरादा और मजबूत हो गया और मैं लोगों को जागरूक करने लगा। रक्तदान से कमजोरी नहीं आती बल्कि चेहरे पर और ग्लो आ जाता है। रक्तदान की विदिशा में रहने वाले बड़े भाई से प्रेरणा मिली है। हमारा पूरा परिवार रक्तदान करता है। बड़े भाई करीब 119 बार रक्तदान कर चुके हैं।
उम्र- 49 रक्तदान- 91
उद्देश्य- थैलेसीमिया से अलटज़् रहने के लिए जागरूकता फैलाना हमारा उद्देश्य है ताकि थैलेसीमिया के मरीजों को रक्त मिल सके। इसमें जागरूकता आना जरूरी है। समाज में थैलेसीमिया न बढ़े। सरबजीत कहते हैं कि करीब छह वषज़् में लोग थैलेसीमिया को जानने लगे हैं। इसके लिए यह होना चाहिए कि लोगों को परिवार के सदस्यों की थैलेसीमिया की जांच करवानी चाहिए। यह एक प्रकार की अनुवांशिक बीमारी है, इससे बचना जरूरी है। मुझे याद है कि सालों पहले तीन बच्चे मिले थे। हम उन्हें ब्लड देते थे। थैलेसीमिया की जानकारी हमें वहां से मिली। हम वकज़् करते चले गए। एक मंच पर लोगों को लाए। अब जिले के थैलेसीमिया का डाटा एकत्र किया जा रहा है। हमारी कोशिश है कि थैलेसीमिया का वकज़्शॉप लगाकर लोगों को जागरूक किया जा सके।