अजय खरे @ जबलपुर। दमोह जिला की नोहटा तहसील में स्थित ऐतिहासिक नोहलेश्वर मंदिर का निर्माण कल्चुरी नरेश युवराज प्रथम ने अपनी प्रिय रानी नोहला के नाम पर कराया था। युवराज शैव धर्मावलंबी थे उन्होंने अपने शासन काल 915 से 945 ई. के बीच इस अद्वितीय मंदिर का निर्माण कराया था। मंदिर की खासियत यह है कि यह मुस्लिम आक्रांताओं के हमलों से सुरक्षित रहा।
100 फीट लंबे चौड़े चबूतरे पर बना है मंदिर
यह मंदिर सागर जबलपुर राजमार्ग पर मुख्य सड़क के किनारे स्थित है मंदिर का निर्माण 100 फीट लंबाई चौड़ाई वाले 6 फीट उंचे चबूतरे पर किया गया है । मंदिर का प्रवेश द्वार पांच शाखाओं में विभक्त है । मंडप के चार मुख्य स्तंभ हैं । इस मंदिर के गर्भगृह का शिखर अत्यंत अलंकृत है जिसमें शिवलिंग स्थापित है। मंदिर का शिल्प बहुत कुछ खजुराहो के मंदिरों जैसा है।
नर्मदा और यमुना की मूर्तियां
इसका बारीक नक्काशियों वाला मूर्ति शिल्प अनुपम है। दायीं ओर नर्मदा और बायीं ओर यमुना की मूर्तियां हैं। चबूतरे के निचले भाग पर सामने दोनों ओर चारों तरफ लक्ष्मी के आठ रूपों की मूर्तियां हैं । गजलक्ष्मी की मूर्ति अत्यंत मनोहारी है। मंदिर के अलंकरण में मातृका मूर्तियों का ज्यादा उपयोग किया है।मुख्य द्वार पर शीर्ष भाग में नवग्रह की मूर्तियां हैं ।
कल्चुरी काल का श्रेष्ठ मंदिर
मंदिर में सरस्वती, विष्णु, अग्नि, कंकाली देवी, उमा-महेश्वर, शिव-पार्वती, लक्ष्मी नारायण के भी दर्शन होते हैं । पशु पक्षियों को उनके ब्याल के रूप में उत्कीर्ण किया गया है। यह कल्चुरि काल की स्थापत्य कला के सर्वश्रेष्ठ मंदिरों में से एक है जिसे मध्यप्रदेश राज्य द्वारा संरक्षित घोषित किया गया है ।