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यह है मामला
मप्र लोक सेवा आयोग की परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्रों होशंगाबाद के प्रत्यूष द्विवेदी, टीकमगढ़ के पारस जैन, मुरैना के नितेश जैन व छिंदवाड़ा के रामसुंदर रघुवंशी ने याचिका दायर की। कहा गया कि मप्र सरकार ने 8 जुलाई 2019 को राजपत्र में प्रकाशन के साथ ही प्रदेश की सरकारी सेवाओं के लिए बने मप्र लोक सेवा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए आरक्षण संशोधन विधेयक 2019 लागू कर दिया। इस संशोधन के जरिए प्रदेश की सरकारी नौकरियों में ओबीसी ( अन्य पिछड़ा वर्ग ) का आरक्षण 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिया। अधिवक्ता आदित्य संघी ने इसे संविधान व सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का उल्लंघन बताया।
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63 फीसदी हो गया आरक्षण
उन्होंने तर्क दिया कि इन दिशानिर्देशों के तहत कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता। इसमें एससी का 16, एसटी का 20 व ओबीसी का 14 प्रतिशत निर्धारित है। इसके बावजूद राज्य सरकार ने संशोधन को लागू कर ओबीसी आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया। इससे कुल आरक्षण बढ़कर 63 फीसदी हो गया। जो असंवैधानिक है। इस संशोधन को निरस्त करने की मांग की गई। प्रारंभिक सुनवाई के बाद कोर्ट ने मप्र सरकार के विधि एवं विधायी कार्य, सामान्य प्रशासन, गृह विभागों के प्रमुख सचिवों व मप्र लोक सेवा आयोग को नोटिस जारी करने के निर्देश दिए।