ये है मामला
अब तक की जांच में खुलासा हुआ है कि वर्ष 2009-2010 में लैंड रिकॉर्ड के कम्प्यूटरीकरण के दौरान गाडरवारा में यह फर्जीवाड़ा हुआ। उस समय तहसीलदार रहे वीरेन्द्र सिंह कर्ण (वर्तमान में जबलपुर के गोहलपुर में एसडीएम) और भुवन गुप्ता (वर्तमान में टीटीनगर एसटीएम कार्यालय में तहसीलदार) के साथ मिलीभगत कर माया बाई गुर्जर, नन्हेलाल गुर्जर, किशोर सिंह गुर्जर, भैयाजी गुर्जर, सकुनबाई लोधी, श्यामलाल लोधी, सावित्री बाई गुप्ता, विनोद कुमार गुर्जर और एक अन्य माया बाई गुर्जर ने ५० हेक्टेयर वर्चुअल भूमि का रिकॉर्ड तैयार किया।
हितग्राहियों ने खसरा क्रमांक के साथ आब्लिक जोड़कर वर्चुअल भूमि दर्शाई। फिर साठगांठ कर फर्जी नाम दर्ज कर आरोपितों के खाते में जमीन चढ़ा दी। फिर इसी रिकॉर्डेड खसरा के आधार पर एसबीआई, सेंट्रल बैंक, आईसीआईसीआई, यूनियन बैंक और इलाहाबाद बैंक से एक करोड़ रुपए से अधिक का केसीसी कर्ज लिया। आरटीआई कार्यकर्ता विनायक परिहार की शिकायत पर मामला दर्ज किया गया। आरोपितों ने एक बैंक का कर्ज चुकाए बिना फर्जी एनओसी लेटर और सील तैयार कर दूसरे बैंकों से भी उसी खसरे पर लोन ले लिया। अब वर्ष २००९-१० में हुए एनआईसी सर्वे सम्बंधी सॉफ्टवेयर रिकॉर्ड जब्त कर फर्जीवाड़े का खुलासा होगा।