प्राकृतिक खूबसूरती से लबरेज जबलपुर जिले के पर्यटन स्थलों की नहीं हो रही ब्रांडिंग
जबलपुर•Aug 26, 2021 / 07:20 pm•
shyam bihari
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जबलपुर। पर्यटन के लिहाज से बेहद खूबसूरत है जबलपुर। प्रकृति ने इसे दिलखोलकर खूबसूरती दी है। जल-जंगल-पहाड़ दिए हैं। लेकिन, जिम्मेदारों ने उतने ही बुझे दिल से इसकी अनदेखी की है। पौराणिक काल से लेकर आधुनिक जमाने तक जबलपुर में बहुत से स्थल सज-संवरकर पर्यटकों का इंतजार कर रहे हैं। शहर वन एवं वन्य प्राणी क्षेत्रों का सेतु है। यह कान्हा टाइगर रिजर्व, बांधवगढ़ नेशनल पार्क, मुकुंदपुर वाइट टाइगर सफारी, पन्ना नेशनल पार्क, सतपुड़ा टाइगर रिजर्व, पेंच नेशनल पार्क, नौरादेही वाइल्ड लाइफ सेंचुरी सड़क मार्ग से जुड़ता है। यहां की संगमरमरी वादियां हर किसी को मोहित कर लेती हैं। भेड़ाघाट का धुआंधार, चौंसठ योगिनी मंदिर, मदन महल का किला, पायली और बरगी बांध, ओशो आश्रम, शिव मंदिर, कचनार सिटी, डुमना नेचर पार्क, मां त्रिपुर सुंदरी मंदिर ऐसे स्थल हैं, जिन्हें कोई एक बार देख ले, तो दोबारा भी खिंचा चला आता है। अपने साथ और लोगों को भी लेकर आता है।
संगम को संजो लें
नर्मदा की दो सहायक नदियों के संगम तो अभी भी गुमनामी में हैं। इन्हें न तो पर्यटन स्थल के रूप में स्थापित किया गया और न खूबसूरती व धार्मिक महत्व बताया गया। नर्मदा से गौर नदी व हिरन नदी के मिलन स्थलों को पर्यटन स्थल व धार्मिक स्थली के रूप में विकसित किया जाए, तो दुनियाभर के पर्यटक दौड़े चले आएंगे। जमतरा में नर्मदा व गौर नदी के संगम की खूबसूरती दिल में उतर जाती है। नर्मदा व हिरन नदी के संगम स्थल की खूबसूरती देखते ही बनती है। इस स्थल का एक तट जबलपुर व दूसरा तट नरसिंहपुर जिले में है। दूसरे तट की पहचान सांकल घाट के रूप में है। इस तट के पास ही वह गुफा है, जिसमें शंकराचार्य ने तपस्या की थी। सुरम्य प्राकृतिक स्थल पर दोनों नदियों के संगम की रमणीयता देखते ही बनती है। लेकिन अब तक ये स्थल शहरी क्षेत्र के ही रहवासियों की पहुंच से दूर है। जिले में इतना कुछ देखने के लिए है कि पर्यटन के लिहाज से यह प्रदेश में नम्बर-1 बन सकता है। लेकिन, सम्बंधित विभागों के जिम्मेदारों ने कभी भी इसके बारे में सोचा ही नहीं। यह भी चिंताजनक है कि जिले का एक भी जनप्रतिनिधि भूलकर भी पर्यटन को बढ़ावा देने की कोशिश करता नजर नहीं आता। हालांकि, देर नहीं हुई है। देर से आएं, लेकिन दुरुस्त आएं। शहर की खूबसूरती में चार-चांद प्रकृति खुद ही लगाती रहती है। जिम्मेदार सिर्फ इतना कर दें कि पर्यटन स्थलों तक आसानी से पहुंचने की व्यवस्था हो जाए। वहां की ब्रांडिंग की जाए।
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